Sunday 27 March 2016

Sandeep Maheshwari Biography Success Story in Hindi

sandeep-maheshwari-biography-success-story-in-hindi
इस पोस्ट में Sandeep Maheshwari की Biography (in Hindi) को पूरी तरह से समझाया गया है। अगर ध्यान से पढो तो आपको बहुत कुछ सिखने को मिल सकता है।
इन दिनों, बहुत से लोग ऐसे है जो किसी के निचे काम करना नहीं चाहते है। इसके बजाय, वे तो बस अपनी विशेष रुचि या क्षेत्र में अपने स्वयं के बिज़नस को Entrepreneurs बनने के लिए करना चाहते है। और हमारे देश भारत में Entrepreneurs का इस तरह बढ़ने का कारन बेरोजगारी है। भारत में Entrepreneurs की बढती लिस्ट में Sandeep Maheshwari भी उन मेसे एक है। लोगो में Sandeep Maheshwari की पॉपुलैरिटी इन्टरनेट पर लोगो के द्वारा Sandeep Maheshari की biography सर्च करते हुए ही दिख रही है। यह उसके प्रति लोगों में Sandeep Maheshwari की पॉपुलैरिटी और प्यार का पता चलता है

Sandeep Maheshwari Wiki

sandeep wiki in Hindi
Sandeep Maheshwari भारत देश के सबसे बड़े Entrepreneurs में से एक है। वो किरोड़ीमल कॉलेज में बिच ही अपनी पढाई छोड़ दी थी, जो कॉलेज दिल्ली के विश्वविद्यालय में है। वो इसी कॉलेज से कॉमर्स के बैचलर से ग्रेजुएशन ले रहे थे। लेकिन दुर्भाग्य से वह अपने व्यक्तिगत कारणों की वजह से ग्रेजुएशन पूरी नहीं कर सके। Sandeep Maheshwari की सक्सेस के बारे में और उनके सक्सेस के मंत्र  को हर कोई जानने को उत्साहित है।
उन्होंने अपने फोटोग्राफी (Photography) का करियर 2000 में शुरू किया था। उन्होंने कई कंपनियों में एक फ्रीलांसर के रूप में भी काम किया है। 2001 में वो बहुत सी मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनी में शामिल भी हुए थे। लेकिन वो उन कंपनियों में अपना उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सके।
2002 में, Sandeep Maheshwari और उनके तीन दोस्तों ने एक नई कंपनी की शुरुआत की थी लेकिन इस कंपनी को 6 महीने के अन्दर ही बंद कर दिया गया था।
Don’t Miss: Sandeep Maheshwari Hindi Quotes

Sandeep Maheshwari’s Images Bazaar

Sandeep-Maheshwari-Images-Bazaar
Entrepreneurs Sandeep Maheshwari ने 2003 में एक कंसल्टिंग फर्म की शुरुआत की और मार्किट में इनकी कंसल्टिंग फर्म को बढ़ने के लिए उन्होंने एक मार्केटिंग पर बुक भी लिखी थी। यह फर्म कुछ समय बाद ही बंद हो गई थी और एक बार फिर वो सक्सेस को पाने में नाकामयाब हो गए थे। और फिर अंत में वो अपने जिंदगी के सारे नाकामयाब/विफलताओ से सिखा, उन्होंने अपने फेलियर से सिखा और अपने पसंदीदा जूनून, फोटोग्राफी में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने घर से ही फैशन फोटोग्राफी बिज़नस शुरू किया और 2004  में इन्टरनेट पर फोटोग्राफी की एक वेबसाइट लौंच की। और वह वेबसाइट है: ImagesBazaar.Com
उन्होंने इस वेबसाइट के माध्यम से कई विश्व रिकार्ड्स भी तोड़े है। उनकी वेबसाइट का नाम इमेजेज बाज़ार है। इस वेबसाइट में 8 लाख से भी ज्यादा भारतीय तस्वीरे (Indian Pictures) है, इतना ही नहीं यह आंकड़े बहुत तेज़ी से बढ़ रहे है।
और वर्तमान में, जो लोग अपनी जिंदगी में फेलियर को लेकर जो हार मान कर बैठे है उनको मोटीवेट करने के लिए Sandeep Maheshwari बहुत सारे सेमिनार भी देते है। और हर व्यक्ति उनके सेमिनार को उनके YouTube चैनल पर देख सकता है। और साथ ही कोई अगर ये सब सेमिनार YouTube पर ऑनलाइन नहीं देखना चाहता है तो वह Sandeep Maheshwari की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाकर अब तक जितने सेमिनार हुए है उन में से कोई भी सेमिनार को फ्री में डाउनलोड कर के ऑफलाइन भी देख सकता है।
एक बार फिर भारतीय व्यक्ति ने यह साबित कर दिया की अगर आप कोई भी चीज प्राप्त करना चाहते है तो आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
Don’t Miss: Unstoppable Motivational Story By Sandeep Maheshwari

Sandeep Maheshwari Popularity

sandeep-maheshwari-last-life-changing-seminar
Last Life Changing Seminar
कभी नहीं रुकने वाला व्यक्ति यानी Sandeep Maheshwari इमेजेज बाज़ार का CEO और फाउंडर है। उनको अपने महान विचार और इतनी पहुच के लिए कई सारे अवार्ड प्राप्त हुए है, उन्होंने Tommorow अवार्ड का पायनियर, युवा रचनात्मक उद्यमी अवार्ड और स्टार अचीवर अवार्ड जीता। उन्होंने फोटोग्राफी में भी कई रिकार्ड्स भी तोड़े है और विश्व रिकॉर्ड की लिम्का बुक में कुछ नए रिकार्ड्स बनाये है।
sandeep-maheshwari-unstoppable-seminar
Unstoppable Seminar
Sandeep Maheshwari की इस पॉपुलैरिटी को देख कर कई लोग Sandeep Maheshwari के पत्नी का नाम जानने के लिए हत्साहित है। यहाँ तक की बहुत सी लडकियां तो मिलने के लिए उत्साहित है।
और Sandeep Maheshwari का सेशन करते वक्त उनका एक tagline रहता है, वो है: “आसान है”

Sandeep Maheshwari’s Company

Sandeep-Maheshwari-Net-Worth
Sandeep Maheshwari की वेबसाइट इमेजेज बाज़ार का टर्नओवर हर साल का 10 करोड़ है। वह भारत में Entrepreneurs की टॉप 10 की लिस्ट में आते है। संदीप माहेश्वरी की जीवनी इतने सारे लोगों के जीवन में विफलताओं के खिलाफ लड़ने के लिए और अपने जीवन में बहुत कुछ करने के लिए प्रेरित किया है। वह धेर्य और आत्मा विश्वास रखने वाले व्यक्ति है। बहुत से लोग और Sandeep Maheshwari के फोल्लोवेर्स (Followers) है जो एक बार उनसे मिलने के लिए बहुत बेताब हैं और उस उद्देश्य के लिए वे नियमित रूप से इंटरनेट पर विभिन्न वेबसाइटों पर Sandeep Maheshwari को सम्पर्क करने की जानकारी लेते है।
Don’t Miss: Story From Sandeep Maheshawari Last Life Changing Seminar

Sandeep Maheshwari Contact Details & Seminars

sandeep-maheshwari-seminars
यदि आप किसी कॉलेज या एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में Sandeep Maheshwari का सेमिनार करवाना चाहते है तो वे उसी के लिए ashok@sandeepmaheshwari.com पर श्री अशोक मिश्रा से संपर्क कर सकते हैं। आप Sandeep Maheshwari सेशन के लिए info@sandeepmaheshwari.com पर भी मेल कर सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे इन सेशन और सेमिनारों के लिए कुछ भी कभी नहीं लेते है। उन्होंने अब तक सभी सेमिनारो को करने के लिए कुछ भी नहीं लिया है, सब सेमिनार को फ्री में किया है, यानि अब तक Sandeep Maheshwari ने जितने सेमिनार किये है वो सब दुसरो के भले के लिए है।

Final Words

मुझे उम्मीद है यह Sandeep Maheshwari की Hindi biography आपको न केवल Sandeep Maheshwari के बारे में बता रहा है बल्कि आपको इस biography से कई मोटिवेशन भी मिली है
यह biography यह साबित करती है की अगर आप अपने जिंदगी में फ़ैल होते हो तो इसका मतलब यह नहीं है की आप जिंदगी से फ़ैल हुए हो, क्योंकि एक इवेंट में फ़ैल का मतलब जिंदगी में फ़ैल होना नै है
एक इवेंट का एंड जिंदगी के एंड नहीं है, जिंदगी में तो लाखो-करोड़ो इवेंट आने वाले है
– Sandeep Maheshwari

कांच तराशने वाली लड़की ने खड़ी की चालीस हज़ार करोड़ की कम्पनी

कांच तराशने वाली लड़की ने खड़ी की चालीस हज़ार करोड़ की कम्पनी

Inspiring Rags to Riches Story in Hindi

Zhou Qunfei Rags to Riches Story in Hindi
Zhou Qunfei Founder Lens Technology
कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जिन पर हमको तब तक यकीन नहीं होता जब तक  हम उन्हें  हकीकत में न देख लें। और आज हम आपके साथ एक ऐसी ही बेहद inspiring rags to riches story Hindi में शेयर कर रहे है जिसे अगर कोई बताता तो शायद आप यकीन नहीं करते लेकिन आज वो एक reality है।
ये कहानी है Zhou Qunfei / झोऊ क़ुएन्फ़ेइ की। एक ऐसी लड़की जिसका जन्म चाइना के एक छोटे से गाँव में हुआ, जिसने बचपन से ही गरीबी देखी, जिसकी माँ उसे 5 वर्ष की छोटी अवस्था में दुनिया छोड़ कर चली गयी और जिसके पिता उसके जन्म से पहले ही अंधे हो गए हों… एक ऐसी लड़की जो कभी सिर्फ रोज का 1 डॉलर कमाती हो….आज वही लड़की दुनिया की सबसे अमीर self made women entrepreneur है, आज वही लड़की चाइना की सबसे अमीर महिला है और आज वही लड़की 6 billion dollar यानि चालीस हज़ार करोड़ रुपये की मालकिन है।
आजकल सभी स्मार्टफोन कम्पनियाँ मोबाइल फ़ोन की स्क्रीन पर स्क्रीन गॉर्ड का इस्तेमाल करती हैं। ये स्क्रीन गार्ड मोबाइल फ़ोन की स्क्रीन को स्क्रैच से बचाता है। इस ग्लास का आविष्कार Zhou की कम्पनी ने ही किया है। जिसके लिए उन्हें “Queen of Mobile Phone Glass” कहा जाता है। Zhou चीन की सबसे अमीर महिला हैं और ये मुकाम उन्होंने अकेले दम पर ही हासिल किया है।
लेकिन ये मुकाम इन्हे इतनी आसानी से नहीं मिला। इसके लिए इन्होने रात दिन कड़ी मेहनत की है और काफी मुश्किलों और विपरीत परिस्थितियों का सामना किया है।
आइये जानते है उनके इस मुश्किल भरे सफर की दास्ताँ-

प्रारम्भिक जीवन

जोऊ कुनफई का जन्म 1970 में चीन के हुनान राज्य के एक छोटे से गाँव में हुआ था। इनके जन्म से पहले ही एक दुर्घटना में इनके पिता की आँखों की रौशनी चली गयी। जब वो महज 5 वर्ष की थीं तभी उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। अब वो एक बिन माँ तथा अंधे पिता की ऐसी बच्ची थी जो दुनिया की भीड़ में बिल्कुल अकेली थी। इनका बचपन बहुत अभावों में बीता। माँ का प्यार, हँसता खेलता बचपन , खेलना-कूदना बहुत छोटी सी उम्र में ही इनसे छिन गया। लेकिन उनके पिता ने उन्हें हौसला दिया और खुद छोटा-मोटा काम करके उन्हें पढ़ाया। झोऊ भी बचपन से ही परिवार को चलाने के लिए सूअर और बत्तखें पालने में मदद करती थीं।
झोऊ बताती हैं-
जिस गाँव में मैं पली-बढ़ी वहां लड़कियों के लिए अधिक पढने की choice नहीं थी। उनकी engagement या शादी हो जाती और फिर पूरी लाइफ वे उसी गाँव में बिता देतीं। लेकिन मैं कुछ और करने की ठानी, और मुझे उसका पछतावा नहीं है।

नौकरी की शुरुआत

किसी तरह Zhou ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। लेकिन 16 वर्ष उम्र में उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पेट भरने तथा अपने अंधे पिता का सहारा बनने लिए उन्होंने नौकरी करने का निर्णय लिया। लेकिन गाँव में कोई रोज़गार नहीं होने के कारण उन्हें गाँव छोड़ना पड़ा और नौकरी करने दक्षिणी शहर शेनज़ेन चली गयीं। शेनज़ेन में उन्हें एक घड़ियों के ग्लास बनाने वाली कंपनी में ग्लास तराशने का काम मिल गया। नौकरी के साथ साथ वे शेनज़ेन यूनिवर्सिटी से पार्ट टाइम कोर्स भी करती रहीं।
Zhou कहती हैं-
वहां काम करने की conditions बहुत बुरी थीं। मुझे सुबह 8 बजे से रात को 12 बजे तक काम करना पड़ता था और कभी-कभी 2 बजे तक भी…
यहाँ तीन महीने काम करने के बाद उन्होंने ने अपने resignation letter लिख कर factory chief को दिया।
उन्होंने अपने इस्तीफे में नौकरी छोड़ने के कारण को इतनी रचनात्मकता के साथ लिखा कि उसे पढ़कर मैनेजमेंट को लगा कि इस लड़की में कुछ खास बात है। और उन्होंने Zhou का इस्तीफ़ा नामंज़ूर करते हुए उन्हें नए विभाग में प्रोन्नत कर दिया। इसके बाद तीन साल तक वो वहीँ काम करती रहीं और बहुत कुछ सीखा।

अपनी कम्पनी की शुरुआत :

1993 में जब झोऊ बाईस साल की थीं तब उन्होंने अपनी खुद की कम्पनी स्टार्ट करने की सोची। उन्होंने थोड़ा-थोड़ा करके लगभग $3000 जमा कर लिए थे। इन पैसों और अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर उन्होंने watch lenses बनाने का काम शुरू कर दिया।
नयी कम्पनी में झोऊ छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम करने के लिए तैयार रहती थीं। वे खराब मशीनों को बनाने जैसे कठिन काम भी कर लेती थीं और आज जब उनकी कंपनी हज़ारों करोड़ की हो गयी है तो भी वो छोटे-छोटे काम करने से संकोच नहीं करतीं।
झोऊ अपने काम के प्रति दीवानी हैं, यही वजह है कि उनके ऑफिस और घर के बीच में बस एक दरवाजे का अंतर है। वे किसी भी समय, दिन हो या रात फैक्ट्री का काम देखने चली आती हैं और काम करने वाले कर्मचारियों को मोटिवेट करती हैं।

परिवार:

झोऊ ने दो शादियाँ कीं, पहली अपनी पुरानी फैक्ट्री के बॉस से, इस शादी से उन्हें एक बच्चा हुआ और बाद में तलाक़ हो गया। दूसरी शादी एक पुरानी दोस्त से जो फैक्ट्री में उनके साथ काम करता था, इस शादी से भी उन्हें एक बच्चा है और उनके पति Lens board member हैं।

कैसे बनीं अरबपति ?

झोऊ मोबाइल फोंस की वजह से अरबपति बनीं। 2003 में भी वे सिर्फ घड़ियों के लिए कांच बनाती थीं। एक दिन उन्हें Motorola के किसी executive से कॉल आई, “ क्या आप हमारे नए मोबाइल Razr V3 के लिए ग्लास स्क्रीन बनाने में मदद करेंगी?”
उस समय तक ज्यादातर mobile screen प्लास्टिक की बनी होती थीं। मोटोरोला एक ग्लास स्क्रीन चाहती थी जिसपे scratches कम पड़ें और इमेजेज भी सही दिखें।
झोऊ बताती हैं-
मेरे पास ये कॉल आई और कहा गया, ‘ आप हमें हाँ या ना में जवाब दीजिये अगर आप हाँ कहेंगी तो हम ये पूरा प्रोसेस सेटअप करने में मदद करेंगे।’, मैंने हाँ कर दी।
इस नए काम को करने के लिए झोऊ ने 2003 में एक नयी कम्पनी बनायी जिसका नाम रखा गया LENS Technology .
Scratch Proof Glassउनकी कम्पनी as per expectation ग्लास के ऊपर scratch-resistant coating बनाने में कामयाब हो गयी और इसका पेटेंट करा लिया। इसके बाद HTC, Nokia, और Samsung जैसी कम्पनियां भी उन्हें आर्डर देने लगीं। इसके बाद 2007 में Apple ने market में iPhone उतारा, जिसमे keyboard-enabled glass touch screen थी, इस डिवाइस ने पूरा खेल ही बदल दिया और सौभग्य से Apple ने झोऊ की कम्पनी Lens Technology को अपना supplier चुन लिया।
इसके बाद झोऊ ने अपनी निजी प्रॉपर्टी गिरवी रख के पैसे उठाये और डिमांड पूरी करने के लिए नयी-नयी फैक्ट्रियों का निर्माण किया। आज इस क्षेत्र में बहुत अधिक competition है और 100 से अधिक कम्पनियां ये काम कर रही हैं मगर फिर भी झोऊ की लीडरशिप में उनकी कम्पनी ने अपनी dominance बनायीं हुई है।
स्मार्टफोन के Screen Scratch Protected Glass (स्क्रैचरोधी ग्लास) बनाने के साथ साथ उनकी कंपनी लैपटॉप तथा कैमरों के लिए भी Touch panel, Cover Glass, Touch Panel Covers बनाती है।
झोऊ ने अकेले दम पर जो मुकाम हासिल किया उसके लिए उन्हें “Queen of Mobile Phone Glass” कहा जाने लगा।
आज Lens में 75000 से अधिक workers हैं और Changsa region की तीन manufacturing facilities में दिन-रात काम चलता रहता है। रोज बड़ी बारीकी और precision के साथ अमेरिका और जापान से import किये गए ग्लास को काटा, पोलिश किए और chemically teat किया जाता है।
झोऊ इस प्रक्रिया के हर एक स्टेप को बड़ी ही डिटेल में खुद design और choreograph करती हैं।झोऊ हर चीज को डिटेल में डिफाइन और डिजाईन करने की आदत अपने बचपन को देती हैं। वे कहती हैं-
मेरे पिता की दृष्टि चली गयी थी, इसलिए अगर हम कोई चीज कहीं रखते थे तो वो बिलकुल सही जगह होनी चाहिए थी ताकि कोई गड़बड़ ना हो, और यही attention मैं काम करने की जगह पर चाहती हूँ।
अपनी कम्पनी शुरू करने के बाईस साल बाद मार्च 2015 में Lens Technology ने अपना IPO launch किया और एक दस बिलियन डॉलर की कम्पनी बन गयी।
इतनी सफलता पाने के बावजूद झोऊ एक down to earth person हैं। एक अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा –
मैं एक high-profile person बनने के लिए qualify नहीं करती, मुझे लगता है ये ज़रूरी है कि सफलता मिलने पर आप carried away न हो जाएं और बुरे वक़्त में आप बिलकुल निराश हो जाएं।
दोस्तों, इतनी विपरीत परिस्थितियों और मुश्किलों का सामना करते हुए अपनी मेहनत से चीन की सबसे अमीर महिला बनकर Zhou ने साबित कर दिखाया है कि अगर इंसान चाहे तो कितनी भी मुश्किल और विपरीत परिस्थितियां होने के बाद भी ज़िन्दगी में वो सबकुछ हासिल कर सकता है जिसके बारे में वो सोच सकता है। झोऊ की ये inspirational rags to riches story दुनिया भर के लोगों के लिए एक प्रेरणा है जो अपनी लाइफ में successful होना चाहते हैं।
मेहनत करिए, आगे बढिए, जोखिम उठाइए और अपने सपनो को साकार करिए!
Thanks!
PushpendraPushpendra Kumar Singh
Greater Noida
Email:er.pushpendra1@gmail.com
Blog: www.gyanversha.com
Connect through: Facebook  Google+  Twitter
Mr. Pushpendra is working as an Asst. Manager (Mechanical Design). He enjoys reading motivational books and blogs and is passionate about his blog Gyan Versha.

कभी 2 रुपये कमाने वाली कल्पना सरोज ने खड़ी की 500 करोड़ की कम्पनी

कल्पना सरोज के सफलता की कहानी 

Kalpana Saroj Success Story in Hindi

Kalpana Saroj Success Story in Hindi
कल्पना की उड़ान !
कहानी थोड़ी फ़िल्मी है लेकिन है सौ फीसदी सच्ची। कल्पना सरोज जी का जीवन ‘‘स्लमडॉग मिलेनियर’’ फिल्म को यथार्थ करता हुआ नजर आता है। Kalpana Saroj की कहानी उस दलित पिछड़े समाज के लड़की की कहानी है जिसे जन्म से ही अनेकों कठिनाइयों से जूझना पड़ा, समाज की उपेक्षा सहनी पड़ी, बाल-विवाह का आघात झेलना पड़ा, ससुराल वालों का अत्याचार सहना पड़ा, दो रुपये रोज की नौकरी करनी पड़ी और उन्होंने एक समय खुद को ख़त्म करने के लिए ज़हर तक पी लिया, लेकिन आज वही कल्पना सरोज 500 करोड़ के बिजनेस की मालकिन है। आइये जानते हैं कल्पना सरोज के बेहद inspiring life journey के बारे में।

पारिवारिक पृष्ठभूमि:

सन 1961 में महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गाँव रोपरखेड़ा के गरीब दलित परिवार में कल्पना का जन्म हुआ। कल्पना के पिता एक पुलिस हवलदार थे और उनका वेतन मात्र 300 रूपये था जिसमे कल्पना के 2 भाई – 3 बहन , दादा-दादी, तथा चाचा जी के पूरे परिवार का खर्च चलता था। पुलिस हवलदार होने के नाते उनका पूरा परिवार पुलिस क्वार्टर में रहता था।कल्पना जी पास के ही सरकारी स्कूल में पढने जाती थीं, वे पढाई में होशियार थीं पर दलित होने के कारण यहाँ भी उन्हें शिक्षकों और सहपाठियों की उपेक्षा झेलनी पड़ती थी।
कल्पना जी अपने बचपन के बारे में बताते हुए कहती हैं –
हमारे गाँव में बिजली नहीं थी…कोई सुख-सुविधाएं नहीं थीं…बचपन में स्कूल से लौटते वक़्त मैं अकसर गोबर उठाना, खेत में काम करना और लकड़ियाँ चुनने का काम करती थी…

कम उम्र में विवाह:

कल्पना जी जिस society से हैं वहां लड़कियों को “ज़हर की पुड़िया” की संज्ञा दी जाती थी, इसीलिए लड़कियों की शादी जल्दी करके अपना बोझ कम करने का चलन था। जब कल्पना जी 12 साल की हुईं और सातवीं कक्षा में पढ़ रही थीं तभी समाज के दबाव में आकर उनके पिता ने उनकी पढाई छुडवा दी और उम्र में बड़े एक लड़के से शादी करवा दी। शादी के बाद वो मुंबई चली गयीं जहाँ यातनाए पहले से उनका इंतजार कर रहीं थीं।
कल्पना जी ने एक इंटरव्यू में बताया-
मेरे ससुराल वाले मुझे खाना नहीं देते, बाल पकड़कर बेरहमी से मारते, जानवरों से भी बुरा बर्ताव करते। कभी खाने में नमक को लेकर मार पड़ती तो कभी कपड़े साफ़ ना धुलने पर धुनाई हो जाती।
ये सब सहते-सहते कल्पना जी जी स्थिति इतनी बुरी हो चुकी थी कि जब 6 महीने बाद उनके पिता उनसे मिलने आये तो उनकी दशा देखकर उन्हें गाँव वापस लेकर चले गये।

आत्महत्या का प्रयास:

जब शादी-शुदा लड़की मायके आ जाती है तो समाज उसे अलग ही नज़र से देखता है। आस-पड़ोस के लोग ताने कसते, तरह-तरह की बातें बनाते। पिताजी ने दुबारा पढ़ाने की भी कोशिश की पर इतना दुःख देख चुकी लड़की का पढाई में कहाँ मन लगता! हर तरफ से मायूस कल्पना को लगा की जीना मुश्किल है और मरना आसान है ! उन्होंने कहीं से खटमल मारने वाले ज़हर की तीन बोतलें खरीदीं और चुपके से उसे लेकर अपनी बुआ के यहाँ चली गयीं।
बुआ जब चाय बना रही थीं तभी कल्पना ने तीनो बोतलें एक साथ पी लीं… बुआ चाय लेकर कमरे में घुसीं तो उनके हाथ से कप छूटकर जमीन पर गिर गए…देखा कल्पना के मुंह से झाग निकल रहा है! अफरा-तफरी में डॉक्टरों की मदद ली गयी…बचना मुश्किल था पर भगवान् को कुछ और ही मंजूर था और उनकी जान बच गयी!
यहीं से कल्पना जी का जीवन बदल गया। उन्हें लगा की ज़िन्दगी ने उन्हें एक और मौका दिया है…. a second chance.
वो कहती हैं-
जब मैं बच गयी तो सोचा कि जब कुछ करके मरा जा सकता है तो इससे अच्छा ये है कि कुछ करके जिया जाए!
और उन्हें अपने अन्दर एक नयी उर्जा महसूस हुई, अब वो जीवन में कुछ करना चाहती थीं।
इस घटना के बाद उन्होंने कई जगह नौकरी पाने की कोशिश की पर उनकी छोटी उम्र और कम शिक्षा की वजह से कोई भी काम न मिल सका, इसलिए उन्होंने मुंबई जाने का फैसला किया।

मुंबई की ओर कदम:

16 साल की उम्र में कल्पना जी अपने चाचा के पास मुंबई आ गयी। वो सिलाई का काम जानती थीं, इसलिए चाचा जी उन्हें एक कपड़े की मिल में काम दिलाने ले गए। उस दिन को याद करके कल्पना जी बताती हैं, “ मैं मशीन चलाना अच्छे से जानती थी पर ना जाने क्यों मुझसे मशीन चली ही नहीं, इसलिए मुझे धागे काटने का काम दे दिया गया, जिसके लिए मुझे रोज के दो रूपये मिलते थे।”
कल्पना जी ने कुछ दिनों तक धागे काटने का काम किया पर जल्द ही उन्होंने अपना आत्मविश्वास वापस पा लिया और मशीन भी चलाने लगीं जिसके लिए उन्हें महीने के सवा दो सौ रुपये मिलने लगे।
इसी बीच किन्ही कारणों से पिता की नौकरी छूट गयी। और पूरा परिवार आकर मुंबई में रहने लगा।

गरीबी की चोट:

धीरे-धीरे सबकुछ ठीक हो रहा था कि तभी एक ऐसी घटना घटी जिसने कल्पना जी को झकझोर कर रख दिया। उनकी बहन बहुत बीमार रहने लगी और इलाज के पैसे न होने के कारण एक दिन उसकी मौत हो गयी। तभी कल्पना जी को एहसास हुआ कि दुनिया में सबसे बड़ी कोई बीमारी है तो वह है – गरीबी ! और उन्होंने निश्चय कर लिया कि वो इस बीमारी को अपने जीवन से हमेशा के लिए ख़त्म कर देंगी।

सफलता की तरफ कदम:

कल्पना ने अपनी जिन्दगी से गरीबी मिटाने का प्रण लिया। उन्होंने अपने छोटे से घर में ही कुछ सिलाई मशीने लगा लीं और 16-16 घंटे काम करने लगीं; उनकी कड़ी मेहनत करने की ये आदत आज भी बरकरार है।
सिलाई के काम से कुछ पैसे आ जाते थे पर ये काफी नहीं थे, इसलिए उन्होंने बिजनेस करने का सोचा। पर बिजनेस के लिए तो पैसे चाहिए होते हैं इसलिए वे सरकार से लोन लेने का प्रयास करने लगीं। उनके इलाके में एक आदमी था जो लों दिलाने का काम करता था। कल्पना जी रोज सुबह 6 बजे उसके घर के सामने जाकर बैठ जातीं। कई दिन बीत गए पर वो इनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता था पर 1 महीने बाद भी जब कल्पना जी ने उसके घर के चक्कर लगाने नहीं छोड़े तो मजबूरन उसे बात करनी पड़ी।
उसी आदमी से पता चला कि अगर 50 हज़ार का लोन चाहिए तो उसमे से 10 हज़ार इधर-उधर खिलाने पड़ेंगे। कल्पना जी इस चीज के लिए तैयार नहीं थीं और इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए उन्होंने कुछ लोगों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया जो लोगों को सराकरी योजनाओं के बारे में बताता था और लोन दिलाने में मदद करता था। धीरे-धीरे ये संगठन काफी पोपुलर हो गया और समाज के लिए निःस्वार्थ भाव से काम करने के कारण कल्पना जी की पहचान भी कई बड़े लोगों से हो गयी।
उन्होंने खुद भी महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलायी जा रही महात्मा ज्योतिबा फुले योजना के अंतर्गत 50,000 रूपये का कर्ज लिया और 22 साल की उम्र मे फर्नीचर का बिजनेस शुरू किया जिसमे इन्हें काफी सफलता मिली और फिर कल्पना जी ने एक ब्यूटी पार्लर भी खोला। इसके बाद कल्पना जी ने स्टील फर्नीचर के एक व्यापारी से दोबारा विवाह किया लेकिन वे 1989 में एक पुत्री और एक पुत्र का भार उन पर छोड़ कर वे इस दुनिया से चले गये।

बड़ी कामयाबी

एक दिन एक आदमी कल्पना जी पास आया और उसने अपना प्लाट 2.5 लाख का बेचने के लिए लिए कहा।कल्पना जी ने कहा मेरे पास 2.5 लाख नही है ,उसने कहा आप एक लाख मुझे अभी दे दीजिये बाकी का आप बाद में दे दीजियेगा। कल्पना जी ने अपनी जमा पूंजी और उधार मांगकर 1 लाख उसे दिए लेकिन बाद में उन्हें पता चला की ज़मीन विवादस्पद है, और उसपर कुछ बनाया नहीं जा सकता। उन्होंने 1.5-2 साल दौड़-भाग करके उस ज़मीन से जुड़े सभी मामले सुलझा लिए और 2.5 लाख की कीमत वाला वो प्लाट रातों-रात को 50 लाख का बन गया।

हत्या की साजिश 

एक औरत का इनती महंगी ज़मीन का मालिक बनना इलाके के गुंडों को पचा नहीं और उन्होंने कल्पना जी की हत्या की साजिश बना डाली। पर ये उनके अच्छे कर्मों का फल ही था कि हत्या से पहले किसी ने इस साजिश के बारे में उन्हें बता दिया और पुलिस की मदद से वे गुंडे पकड लिए गए।
इसके बाद कल्पना जी अपने पास एक लाइसेंसी रिवाल्वर भी रखने लगीं. उनका कहना था कि मैं बाबा साहेब के इस वचन में यकीन रखती हूँ कि-
सौ दिन भेड़ की तरह जीने से अच्छा है एक दिन शेर की तरह जियो।
आत्महत्या के प्रयास के दौरान वो मौत को इतनी करीब से देख चुकी थीं कि उनके अन्दर से मरने का डर कबका खत्म हो चुका था, उन्होंने अपने दुश्मनों को साफ़-साफ़ चेतावनी दे दी –
इससे पहले की तुम मुझे मारो जान लो की मेरी रिवाल्वर में 6 गोलियां हैं। छठी गोली ख़त्म होने के बाद ही कोई मुझे मार सकता है।
ये मामला शांत होने के बाद उन्होंने ज़मीन पर construction करने की सोची पर इसके लिए उनके पास पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने एक सिन्धी बिजनेसमैन से पार्टनरशिप कर ली। उन्होंने कहा जमीन मेरी है और बनाना आपको है। उसने मुनाफे में 65% अपना और 35 % उनका पर बात मान ली इस प्रकार से कल्पना जी ने 4.5 करोड़ रूपये कमाए।

कमानी ट्यूब्स की बागडोर:

Kamani Tubes की नीव Shri N.R Kamani द्वारा 1960 में डाली गयी थी। शुरू में तो कम्पनी सही चली पर 1985 में labour unions और management में विवाद होने के कारण में ये कम्पनी बंद हो गयी। 1988 में supreme court के आर्डर के बाद इसे दुबारा शुरू किया गया पर एक ऐतिहासिक फैसले में कम्पनी का मालिकाना हक workers को दे दिया गया। Workers इसे ठीक से चला नहीं पाए और कम्पनी पर करोड़ों का कर्ज आता चला गया।
इस स्थिति से निकलने के लिए कमानी ट्यूब्स कम्पनी के workers सन 2000 में कल्पना जी के पास गये। उन्होंने सुन रखा था कि कल्पना सरोज अगर मिट्टी को हाथ लगा दे तो मिट्टी भी सोना बन जाती है।
कल्पना जी ने जब जाना कि कम्पनी 116 करोड़ के कर्ज में डूबी हुई है और उस पर 140 litigation के मामले हैं तो उन्होंने उसमे हाथ डालने से मन कर दिया पर जब उन्हें बताया गया कि इस कम्पनी पर 3500 मजदूरों और उनके परिवारों का भविष्य निर्भर करता है और बहुत से workers भूख से मर रहे हैं और भीख मांग रहे हैं, तो वो इसमें हाथ डालने को तैयार हो गयीं।
बोर्ड में आते ही उन्होंने सबसे पहले 10 लोगों की कोर टीम बनायी, जिसमे अलग-अलग फील्ड के एक्सपर्ट थे। फिर उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार करायी कि किसका कितना रुपया बकाया है; उसमे banks के ,government के और उद्योगपतियों के पैसे थे। इस प्रक्रिया में उन्हें पता चला कि कंपनी पर जो उधार था उसमे आधे से ज्यादा का कर्जा पेनाल्टी और इंटरेस्ट था।
कल्पना जी तत्कालीन वित्त मंत्री से मिलीं और बताया कि कमानी इंडस्ट्रीज के पास कुछ है ही नही, अगर आप interest और penalty माफ़ करा देते हैं, तो हम creditors का मूलधन लौटा सकते हैं। और अगर ऐसा न हुआ तो कोर्ट कम्पनी का liquidation करने ही वाला है, और ऐसा हुआ तो बकायेदारों को एक भी रुपया नही मिलेगा।
वित्त मंत्री ने बैंकों को कल्पना जी के साथ मीटिंग करने के निर्देश दिए। वे कल्पना जी की बात से प्रभावित हुए और न सिर्फ ने सिर्फ penalty और interests माफ़ किये बल्कि एक lady entrepreneur द्वारा genuine efforts को सराहते हुए कर्ज मूलधन से भी 25% कम कर दिया।
पद्मश्री पुरस्कार लेते हुए
पद्मश्री पुरस्कार लेते हुए
कल्पना जी 2000 से कम्पनी के लिए संघर्ष कर रही थीं और 2006 में कोर्ट ने उन्हें कमानी इंस्ट्रीज का मालिक बना दिया। कोर्ट ने ऑडर दिया कि कल्पना जी को 7 साल में बैंक के लोन चुकाने के निर्देश दिए जो उन्होंने 1 साल में ही चुका दिए। कोर्ट ने उन्हें वर्कर्स के बकाया wages भी तीन साल में देने को कहे जो उन्होंने तीन महीने में ही चुका दिए। इसके बाद उन्होंने कम्पनी को modernize करना शुरू किया और धीरे-धीरे उसे एक सिक कंपनी से बाहर निकाल कर एक profitable company बना दिया। ये कल्पना सरोज जी का ही कमाल है कि आज कमानी ट्यूब्स 500 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी बन गयी है।
उनकी इस महान उपलब्धि के लिए उन्हें 2013 में पद्म श्री सम्मान से भी नवाज़ा गया और कोई बैंकिंग बैकग्राउंड ना होते हुए भी सरकार ने उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में शामिल किया।
सचमुच, कल्पना जी की ये कहानी कल्पना से भी परे है और हम सभी को सन्देश देती है कि आज हम चाहे जैसे हैं, पढ़े-लिखे…अनपढ़ …अमीर..गरीब…इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता… हम अपनी सोच से… अपनी मेहनत से अपनी किस्मत बदल सकते हैं…हम असंभव को भी संभव बना सकते हैं और अपने बड़े से बड़े सपनो को भी पूरा कर सकते हैं!
Thank You!
वैभव मिश्रा
लखनऊ , उत्तर प्रदेश
Blog: www.victoryadda.com
Email: jaishreeram332@gmail.com
We are grateful to Mr. Vaibhav Mishra for sharing Kalpana Saroj Success Story in Hindi. We wish him a great future and all the best for his blog Victory Adda.

Saturday 19 March 2016

कन्फ्यूशियस के अनमोल विचार

कन्फ्यूशियस (Confucius) चीन के महान दार्शनिक, शिक्षक और राजनीतिज्ञ थे, जो अपने महान सूक्तियों और समाज के लोगों के पारस्परिक प्रभाव के सिद्धांतों के लिए जाने जाते हैं। उनके दार्शनिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विचारों पर आधारित मत को कन्फ्यूशियस वाद कहा जाता है। जो आगे चलकर चीन सम्राज्य का आधिकारिक दर्शन बना।

Name Confucius/ कन्फ्यूशियस 
Born 28 September 551 BC
Qufu, Zhou Dynasty

Died 479 BC (aged 71–72)

Qufu, Zhou Dynasty

Nationality China
Achievement Founder of Confucianism

Hindi Quotes – Confucius
कन्फ्यूशियस के सुविचार

Quote #1
greatness quotes by confucius
महानता कभी न गिरने में नहीं बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है|
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #2
जीतने की संकल्प शक्ति, सफल होने की इच्छा और अपने अंदर मौजूद क्षमताओं के उच्चतम् स्तर तक पहुंचने की तीव्र अभिलाषा, ये ऐसी चाबियां हैं जो व्यक्तिगत उत्कृष्टता के बंद दरवाजे खोल देती है।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #3
जब यह स्पष्ट हो कि लक्ष्य तक पहुंचा नहीं जा सकता, तब लक्ष्य न बदले। तब लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपनाए गए तरीकों में बदलाव लाए।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #4
उस काम का चुनाव करे, जिसे करने में आनंद आता हो। फिर आपको जिंदगी भर एक भी काम नहीं करना पड़ेगा।
Confucius कन्फ्यूशियस

 Quote #5
हम तीन तरीकों से बुद्धी और ज्ञान हासिल कर सकते हैं। पहला, विचार कर, जो कि सबसे उचित तरीका है। दूसरा, अनुकरण करके, जो की सबसे आसान है। तीसरा, अनुभव से, जो सबसे कड़वा है।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #6
वास्तविक शिक्षा वही है जो किसी के अज्ञान की सीमा को जान सके।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #7
नफरत करना आसान है, प्रेम करना मुश्किल। विश्व की सारी वस्तुएं ऐसे ही काम करती है। सारी अच्छी चीजों को पाना मुश्किल होता हैं, और बुरी चीजें बहुत आसानी से मिल जाती हैं।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #8
suvichar anmol vachan photo quote
दुनिया की हर चीज खूबसूरत होती हैं, लेकिन हर कोई उसे देख नहीं पाता।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #9
यह सबसे अच्छी बात होगी कि अंधेरे को कोसने के बजाए एक छोटा सा दीया जलाया जाए।
Confucius कन्फ्यूशियस
Quote #10
विश्व को व्यवस्थित रखने के लिए, पहले राष्ट्र को व्यवस्थित रखना होगा, राष्ट्र को व्यवस्थित करने के लिए परिवार को व्यवस्थित करना होगा। परिवार को व्यवस्थित रखने के लिए, व्यक्तिगत जीवन का संवर्धन करना होगा और व्यक्तिगत जीवन के संवर्धन के लिए हमें सबसे पहले अपना दिल साफ रखना होगा।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #11
वह जो स्वयं पर विजय प्राप्त करते हैं। वह सबसे बड़े पराक्रमी योद्धा है।
Confucius कन्फ्यूशियस
Quote #12
ईमानदारी और सच्चाई उच्च-नैतिकता के लिए आधार का काम करती हैं।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #13
अगर आप एक साल की योजना बना रहे है, तो एक बीज बोईये, योजना अगर दस साल की है तो पेड़ लगाईये और अगर योजना सौ साल की है तो शिक्षक बन जाइए।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #14
जो आप स्वयं पसंद नहीं करते उसे दूसरों पर मत थोपिए।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #15
सबसे बड़ा दोष, दोष होना और दोष होते हुए भी उसे न सुधारना हैं।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #16
रत्न बिना रगड़े कभी नहीं चमकते। वैसे ही आदमी का व्यक्तित्व बिना संघर्ष नहीं निखरता।
Confucius कन्फ्यूशियस

 Quote #17
एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति कथनी से कम अपनी करनी से ज्यादा जाना जाता है।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #18
वह व्यक्ति जो सीखता है, पर सोचता नहीं वह सीखकर भी खो देगा। वही वह व्यक्ति जो सोचता है, लेकिन सीखता नहीं वह बहुत भारी खतरे में पड़ने वाला होता है।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #19
खामोशी इंसान की सच्ची दोस्त होती है, जो कभी उसके रहस्य उजागर नहीं करती।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #20
जब आप अपने दिल में झाकते है, और कोई गलती नहीं पाते, तब आपको चिंता करने और डरने की क्या बात है?
Confucius कन्फ्यूशियस

 Quote #21
किसी भी राष्ट्र की शक्ति वहां के परिवारों की सत्य निष्ठा और ढृढ़-नैतिकता पर आधारित होती है।
Confucius कन्फ्यूशियस
Quote #22
जब आप किसी प्रशंसनीय व्यक्ति को देखे तब आप उससे भी अच्छा बनने की चेष्टा करे। लेकिन जब आप अप्रशंसनीय व्यक्ति को देखे, तब स्वयं के अंदर झांककर आत्मनिरीक्षण करे।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #23
बिना किसी आदर-भावना के अहसास के, हम इंसान को जानवरों से कैसे अलग कर सकते हैं?
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #24
प्रतिशोध-रथ पर सवार हो तो, यात्रा प्रारम्भ करने से पहले दो कब्र खोदिये।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #25
एक आदमी जो कोई गलती करता है और उसे सही नहीं करता, एक और गलती करता है।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #26
यह बात कतई मायने नहीं रखती की आप कितना धीरे चल रहे हैं, जब तक आप रूक न जाए।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #27
life quotes by confucius in hindi
वास्तव में हमारा जीवन बहुत ही सरल हैं, लेकिन हम ही उसे जटिल बनाने पर तुले रहते हैं।
Confucius कन्फ्यूशियस
Quote #28
यह जानते हुए कि सही क्या है, उसे न करना सबसे बड़ी कायरता है।
Confucius कन्फ्यूशियस

 Quote #29
 सफलता हमेशा पूर्व की तैयारी पर निर्भर होती है, और बिना ऐसी तैयारी के असफलता निश्चित है।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #30
जब हम अपने से विपरीत स्वभाव वाले व्यक्ति को देखे, तब हमें अपने अंदर झांककर उसकी धारणा पर विचार करना चाहिए।
Confucius कन्फ्यूशियस

Quote #31
मानवजाति जानवरों से बस थोड़ी ही अलग हैं। लेकिन बहुत से लोग उस ‘थोड़े’ को भी अपने अंदर से निकाल फेकते हैं।
Confucius कन्फ्यूशियस

यह लेख मुकेश पंडित द्वारा भेजा गया है| मुकेशMotivationalStoriesinHindi.in नाम से एक ब्लॉग चलाते है

Wednesday 9 March 2016

विकलांगता से IAS Topper तक की कहानी – Ira Singhal

विकलांगता से IAS Topper तक की कहानी – Ira Singhal
IAS – UPSC Civil Services Exams! इसकी प्रतिष्ठा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि हर वर्ष लाखों विद्यार्थी IAS Officer बनने के लिए यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा देते है, लेकिन मुश्किल से .025% विद्यार्थी ही IAS Officer बन पाते है|
Civil Services Exams की Final Success Rate सामान्यत: .30% के करीब होती है जिसमें से भी सबसे प्रतिष्ठित Indian Administrative Services की Success Rate सामान्यत: .025% से भी कम होती है|
लेकिन जिनके हौसले बुलंद होते है, वे मुश्किलों से डरते नहीं और सफलता को उनके आगे झुकना ही पड़ता|
UPSC Civil Services Exam 2014 के नतीजे कुछ खास रहे क्योंकि पहले 4 स्थानों पर लड़कियों ने बाजी मारी और उसमें से भी पहले स्थान पर एक ऐसी लड़की सफल हुई, जिसका 60% शरीर विकलांग है|
Ira Singhal ने UPSC Civil Service Exams 2014 में सर्वोच्च स्थान हासिल कर यह साबित कर दिया है कि मेहनत और बुलंद हौसलों के आगे विकलांगता बहुत कमजोर है|
इरा सिंघल को अपनी विकलांगता के कारण कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी|
इरा सिंघल ने 2010 में ही सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली थी और वे Indian Revenue Service – IRS पद पर नियुक्ति की हकदार थी लेकिन शारीरिक रूप से विकलांग होने के कारण डिपार्टमेंट ने उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी| लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और उन्होंने Central Administrative Tribunal (CAT)  में मामला दर्ज कराया |
CAT का फैसला IRA Singhal के पक्ष में आया और उन्हें Assistant Commissioner of Customs and Central Excise Service (IRS) पर नियुक्त किया गया|
कई मुसीबतों के बावजूद इरा सिंघल ने प्रयास जारी रख और फिर से सिविल सेवा की परीक्षा दी| उन्होंने 2014 Civil Service Exam में Top कर, फिर से यह साबित कर दिया कि भले ही वे शारीरिक रूप से थोड़ी कमजोर है लेकिन मानसिक रूप से वे बेहद शक्तिशाली है|
इरा सिंघल महिलाओं, बच्चों और शारीरिक रूप से असक्षम लोगों के कल्याण के लिए कार्य करना चाहती है|
आज हमें इरा सिंघल जैसे लोगों पर गर्व होता है, क्योंकि ऐसे लोग हर बार यह साबित कर देते है कि – नामुनकिन कुछ भी नहीं – Nothing is Impossible| Ira Singhal ने यह साबित किया है कि उनके बुलंद हौसलों के आगे मुसीबतें और विकलांगता बहुत कमजोर है|

Friday 4 March 2016

एक-दो बार नहीं रतन टाटा को हुई थी चार बार मोहब्बत लेकिन...

एक-दो बार नहीं रतन टाटा को हुई थी चार बार मोहब्बत लेकिन...
 देश के सबसे चर्चित हस्तियों में से एक हैं टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा.. जिनके बारे में आज भी हर कोई जानने को बेकरार रहता है। इस अभूतपूर्व प्रतिभा के धनी व्यक्ति के अंदर बहुत कुछ आज भी ऐसा है जिसे जानने के लिए लोग काफी उत्सुक रहते हैं। इसी उत्सुकता को 73 साल के रतन टाटा ने उस वक्त और बढ़ा दिया जब सीएनएन इंटरनेशनल के टॉक एशिया प्रोग्राम में रतन टाटा ने अपनी लव-लाइफ के बारे में अहम खुलासे किए। रतन टाटा ने कहा कि उन्हें लाइफ में एक-दो बार नहीं बल्कि चार बार प्यार हुआ है लेकिन चारों बार हालात ऐसे बन गये जिससे मैं दुल्हा बनते-बनते रह गया। रतन की यह बात सुनकर हर कोई हैरान और मुस्कुराकर रह गया। उन्होंने कहा कि अच्छा ही हुआ मैंने शादी नहीं की वरना मेरा हाल काफी बुरा हो सकता था। बेहद ही शांत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक रतन टाटा ने कहा कि अगर शादी हो जाती तो शायद मैं वो काम नहीं पूरे कर पाता जिन्हें पूरा करके आज मैं काफी सतुष्ट हूं इसलिए कहते हैं ना जो होता है अच्छे के लिए होता है
मोहब्बत तो हुई लेकिन वो मुक्कमल नहीं हुई
रतन ने कहा कि जब मैं अमेरिका में काम कर रहा था तो अपने प्यार को लेकर बेहद गंभीर हो गया था और हम केवल इसलिए शादी नहीं कर सके क्योंकि मैं वापस भारत आ गया। यह पूछे जाने पर कि जिनसे उन्हें प्यार हुआ था उनमें से कोई इस शहर में हैं, तो उन्होंने हां में जवाब दिया, लेकिन इस मामले में आगे बताने से इंकार कर दिया।
अपने शौक पूरा कर रहे हैं
मालूम हो कि रतन टाटा इस समय रिटायर के होने के बाद उन चीजों को पूरा कर रहे हैं जिन्हें वो अपनी बिजी लाइफ की वजह से पूरे नहीं कर पा रहे थे, रतन टाटा को पढ़ने और खाने का शौक है और वो आजकल इन्हीं चीजों में खुद को काफी व्यस्त रखते हैं।

Wednesday 2 March 2016

जीवन में सफलता पाना असंभव नहीं बस मन होना चाहिये

कहानी मिल्खा सिंह की |

1947 का वक़्त और भारत का बटवारा जिन लोगो ने देखा और भोग है वो उस मंज़र को अपनी पूरी ज़िन्दगी में नहीं भूल सकते हैं !नफरत की लहर ने जाने कितने मासूमो की ज़िन्दगी छिन ली और कितनो को अपनों से हमेशा के लिए दूर कर दिया !बटवारे के वक़्त बहुत सारे लोग भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आये इन में बहुत ऐसे लोग ऐसे भी थे जो अपने पुरे परिवार को खो दिए थे नफरत की आग ने उन के परिवारों को लील लिया था उन्ही लोगो में एक सिख बच्चा भी पाकिस्तान से अपनी जान बचा के बहुत मुस्किल से भारत आया था जिसका नाम था मिल्खा सिंह जिसको आज पूरी दुनिया फ्लाइंग सिख के नाम से भी जानती है!

मिल्खा सिंह का जन्म 8 अक्तूबर 1935 को लायलपुर जो अब पाकिस्तान में है हुवा था बटवारे के वक़्त हुवे दंगो में मिल्खा के पुरे परिवार की हत्या कर दी गई थी और मिल्खा किसी तरह अपनी जान बचाते हुवे भारत आ गए !भारत आने के बाद मिल्खा सिंग ने अपनी ज़िन्दगी फुटपाथ पर बितानी शुरू की थी उन्हों ने अपनी जीवका चलने के लिए होटलों में बर्तन मांजने लगे थे लेकिन उसी वक़्त उन्हों ने ये ठान लिया की वे खुद अपनी तक़दीर लिखेंगे ऐसी ज़िन्दगी नहीं जियेंगे और फिर मिल्खा सिंह ने 1958 के एशियाई खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भारत के लिए स्वर्ण पदक कर नया इतिहास रचा ! इसी दौरान मिल्खा सिंग को पाकिस्तान में भारत की ओर से दौड़ने का न्योता मिला लेकिन बचपन की कटु यादो की वजह से मिल्खा सिंह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे ,जब ये खबर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु जी को हुवी तो उन्हों ने मिल्खा सिंह को बुलाया और उन्हें समझाया की यही वो वक़्त है जब आप अपना और अपने देश का नाम दुनिया में ऊँचा कर सकते हो !फिर मिल्खा सिंह पाकिस्तान गए लाहोर के 60 हज़ार दर्शकों से खचा-खच भरे स्टेडीयम में मिल्खा सिंह ने उस वक़्त के पाकिस्तान के सब से तेज़ धावक अब्दुल कादिर को 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में हरा दिया,उस दौड़ को पाकिस्तान के तत्काल रास्ट्रपति जनरल अयूब भी स्टेडीयम में बैठ के देख रहे थे और वे मिल्खा सिंह से इतने प्रभावित हुवे की मेडल को मिल्खा सिंह के गले में डालते वक़्त उन्हों ने मिल्खा सिंह से पंजाबी में कहा "मिल्खा सिंह जी, तुस्सी पाकिस्तान दे विच आके दौडे नइ, तुस्सी पाकिस्तान दे विच उड़े ओ, आज पाकिस्तान तौन्नू फ्लाइंग सिख दा ख़िताब देंदा ए" जिसका हिंदी में मतलब हुवा की "तुम ने पाकिस्तान में दौड़ा नहीं है बल्कि उड़ा है और आज पाकिस्तान आप को फ्लाइंग सिख का ख़िताब देता है " और फिर वही पाकिस्तान से पूरी दुनिया मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख के नाम से जानने लगी लाहोर दौड़ के बाद पाकिस्तानी धावक जिनको मिल्खा सिंह ने हराया था मिल्खा सिंह के अच्छे दोस्त हो गए थे 1962 के जंग में बंदी बनाये जाने के बाद पाकिस्तानी धावक अब्दुल कादिर जो सेना में थे मिल्खा सिंह से मिलना चाहा था और मिल्खा सिंह उनसे मेरठ जेल में मिले और दोनों दोस्त गले लग के बहुत देर तक खूब रोये थे !
 मिल्खा सिंह ने 1956 के मेलबर्न ओलम्पिक ,1960 के रोम ओलम्पिक और 1964 के टोक्यो ओलम्पिक में भारत की तरफ से हिस्सा लिया बाद में उन्हें पद्मश्री की उपाधि से नवाज़ा गया!1960 में मिल्खा सिंह ने रोम ओलम्पिक में भारत के तरफ से हिस्सा लिया था लेकिन वो वहा कोई मैडल नहीं जित सके थे बाउजुद इसके रोम ओलम्पिक मिल्खा सिंह के ज़िन्दगी में एक नया मोड़ ले के आया यही पर उनकी मुलाकात निर्मल जी से हुई थी जो अब उनकी पत्नी हैं ,निर्मल जी महिला वोलीबाल की कप्तान थी !
 मिल्खा सिंह का जूता जिसको उन्हों ने टोक्यो ओलम्पिक में पहना था 24 लाख में नीलाम हुवा था लेकिन इसकी कहानी भी बहुत रोचक है !
 जापान से लौटने के बाद देश भर में मिल्खा सिंह के चाहने वाले उन्हें चिठ्ठी,तार,पार्सल,बधाई पत्र भेज रहे थे इसी दौरान मिल्खा सिंह के लिए एक पार्सल जापान से आया जिसको लेने के लिए भारतीय कस्टम विभाग ने 85 रूपये कस्टम ड्यूटी भरने को कहा !मिल्खा सिंह ने 85 रूपये भर के उस पार्सल को छुड़ा लिया ,घर आने के बाद बहुत उत्साह से मिल्खा सिंह ने जब पार्सल खोल तो उसमे से एक जोड़ी फटा हुवा जूता गिरा और साथ में एक पत्र था जिसमे लिखा था की आप ने गलती से अपना जूता होटल में भूल के चले गए थे जब की वास्तविक बात ये थी की मिल्खा जी ने जान बुझ के वे जूते वहा छोड़ दिए थे की बाद में होटल के सफाई कर्मचारी उस जूते को फेंक देंगे !ये वही जूते थे जिनको मिल्खा सिंह ने टोक्यो ओलम्पिक में पहना था और बाद में ये जूते 24 लाख रूपये में नीलम हुवे !   

यदि आपके पास Hindi में कोई article, story, business idea या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है.  safaltaaapki@gmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks

विनम्रता से अच्छी कोई चीज़ नहीं

विनम्रता – “Be Humble” – Interesting True Story of Dilip Kumar
दोस्तों आज हम एक सच्ची कहानी प्रकाशित करने जा रहे है, जो महान अभिनेता Dilip Kumar के जीवन से जुड़ी हुई है| यह सच्ची घटना (True Incidence) खुद दिलीप कुमार ने शेयर की थी|
तो पढ़िए एक शानदार प्रेरक प्रसंग दिलीप कुमार के शब्दों में —
“उस वक्त की बात है, जब मैं अपने करियर की ऊँचाइयों पर था| एक बार मैं प्लेन में यात्रा कर रहा था| मेरे पास में ही एक व्यक्ति बैठे हुए थे, जिन्होंने सामान्य शर्ट और पेंट पहनी हुई थी| वह दिखने में सामान्य परिवार के व्यक्ति लेकिन शिक्षित मालूम होते थे|
प्लेन के सारे पैसेंजर लगातार मुझे देख रहे थे, लेकिन उनका मेरे ऊपर कोई ध्यान नहीं था| वे आराम से समाचार-पत्र पढ़ रहे थे और खिड़की से झांककर देख रहे थे|
जब चाय आई तो उन्होंने धीरे से उठाकर ले ली|
बातचीत शुरू करने के लिए मैं उनके सामने मुस्कुराया| वे भी मुस्कुराए और उन्होंने मुझे हेल्लो कहा|
हमने बातचीत शुरू की और कुछ ही देर में मैंने “सिनेमा” के विषय पर बातचीत शुरू की|
मैंने कहा – क्या आप फ़िल्में देखते है?
उन्होंने कहा – कभी कभी| मैंने आखिरी फिल्म एक वर्ष पूर्व देखी थी|
मैंने कहा – मैं भी फिल्मों में काम करता हूँ|
उन्होंने कहा – ओह अच्छा| आप फिल्मों में क्या काम करते है ?
मैंने कहा – मैं एक्टर हूँ|
उन्होंने कहा – बहुत अच्छा |
जब प्लेन लैंड हुआ तो मैंने हाथ मिलाया और कहा –
“आपके साथ यात्रा करके अच्छा लगा| वैसे मेरा नाम दिलीप कुमार है (Dilip Kumar)|”
उन्होंने कहा – “धन्यवाद| मेरा नाम जे. आर. डी. टाटा (J. R. D. Tata) है|”

मैं उनका नाम सुनकर सन्न रह गया| आप कितने भी बड़े हो जाओ लेकिन आपसे भी बड़ा हमेशा कोई न कोई होता ही है| घमंड न करें – विनम्र रहें क्योंकि विनम्रता से अच्छी कोई चीज नहीं”
– Dilip Kumar दिलीप कुमार

सपने हमेशा सच होते है

सपने हमेशा सच होते है
Law of Attraction” या “आकर्षण का सिद्धांत” एक चर्चित विषय या विचारधारा है| Law of Attraction के अनुसार हमारे साथ वैसा ही होता है जैसा हम सोचते या मानते है| यानि कि हमारी सोच या विश्वास हमेशा हकीकत बनती है|

Law of Attraction एक प्राकृतिक सत्य है| जब हम किसी चीज को सच्चे दिल से चाहें तो एक अद्भुत प्राकृतिक शक्ति उस लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारी मदद करने लग जाती है| हमारी सारी समस्याएं दूर होने लगती है और सारे बंद दरवाजे अपने आप खुलने लगते है|
How to Change Life with Law of Attraction

सपने देखिए : Be a Dreamer
क्या आप दिन में सपने देखते हैं? 
अगर आपका जवाब हाँ है तो आप अभी तक इन्सान है| और अगर आपका जवाब ना है तो शायद आप एक रोबोट बन चुके है या बनने जा रहे है|
सभी इन्सान सपने देखते है लेकिन 30 वर्ष की उम्र तक आते-आते ज्यादातर व्यक्ति परिस्थितियों के आगे हार मान लेते है और वो एक रोबोट की तरह परिस्थितियों के अनुसार चलते है|
अगर आप चाहते है कि आपके सपने सच हो तो आपको सपने देखने पड़ेगें|

क्या आपके सपनों में “शक्ति” है? : Willpower
अब्दुल कलाम ने कहा है –
सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखते है, सपने वो है जो आपको नींद नहीं आने देते।
अगर आपके लक्ष्य या सपनों में दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी है तो आपका सपना कभी हकीकत नहीं बन सकता| दृढ़ इच्छाशक्ति ही Law of Attraction का आधार है| यह इच्छाशक्ति ही है जो आपको “लक्ष्य” से जोड़े रखती है और निरंतर प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है|
और जब आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है तो पूरी कायनात आपके लक्ष्य को प्राप्त करने में आपकी मदद करती है|  

विश्वास :  Confidence
Law of Attraction
आपके लक्ष्य में “डर” का कोई स्थान नहीं होना चाहिए| अगर आपको स्वंय पर पूरा विश्वास नहीं है या फिर “असफलता का डर” है तो आपका सपना या लक्ष्य शक्तिहीन है| जहाँ “डर” होता है वहां “विश्वास” कमजोर पड़ जाता है| और जब आपको स्वंय पर ही विश्वास नहीं रहता तो पूरी कायनात आपकी मदद कैसे करेगी?

 Law of Attraction = Dreams + Willpower + Confidence

अपने सपनों को जिन्दा रखिए| अगर आपके सपनों की चिंगारी बुझ गई है तो इसका मतलब यह है कि आपने जीते जी आत्महत्या कर ली है|

Tuesday 1 March 2016

असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया

Safalta aapki


‘‘असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया।’’ संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में हर क्षेत्र में सफल होना चाहता है चाहे नौकरी हो या व्यापार, विद्यार्जन हो, प्रतियोगी परीक्षा हो, चाहे कोई कलाकार, संगीतकार, वैज्ञानिक, व्यवसायी हो या कृषक। लडक़ा हो या लडक़ी, विवाहित हो या अविवाहित, सभी सफलता चाहते हैं। लेकिन सफलता शेखचिल्लियों या ख्याली पुलाव पकाने वाले या कोरी कल्पनाओं में सोए रहकर सपने देखने वालों को नहीं मिलती। सफलता ब्याज चाहती है, सफलता को मूल्य देकर (पैसा नहीं) पाना होता है। यह सत्य है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। लेकिन अपनी सफलता की कहानी लिखी जा सके इससे पहले कुछ सूत्रों को अपनाना होगा। दुनिया के सफलतम व्यक्तियों जिन्होंने अपने जीवन मे कामयाबी हासिल की उन्होंने कुछ सूत्रों को जीवन में स्थान दिया। सफलता के शीखर को जिन्होंने छुआ, उस पर प्रतिष्ठित हुए ऐसे महापुरुषों के जीवन में अपनाए गए प्रयोगों से हम प्रेरणा लें।

Safalta aapki


1.    दृढ़ इच्छा शक्ति :-  सफलता का मूल मनुष्य की इच्छाशक्ति में सन्निहित होती है। समुद्र से मिलने की प्रबल आकांक्षा करने वाली नदी की भांति वह मनुष्य भी अपनी सफलता के लिए मार्ग निकाल लेता है, जिसकी इच्छाशक्ति दृढ़ और बलवती होती है,
उसके मार्ग में कोई भी रूकावट बाधा नहीं डाल सकती।
संसार के सभी छोटे-बड़े कार्य किए जा सकने के माध्यम शक्ति है। लेकिन वास्तविक शक्ति मनुष्य की इच्छा शक्ति है। इच्छा की स्फूरण से कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। प्रेरणा से व्यक्ति कर्म करने के लिए प्रवृत्त हो जाता है। इस प्रकार सारी सफलताएं इच्छा शक्ति के अधीन होती है। एक गांव में मजदूर के घर पला हुआ बच्चा लखपति बन जाता है। छोटे से किसान के घर सामान्य जीवन जीने वाला विद्यावान बन जाता है। यह उसकी इच्छा शक्ति है। महात्मा गांधी प्रबल इच्छा शक्ति के जीते जागते आदर्श थे। कु. केलर गूंगी बहरी अंधी होकर भी कई विषयों एवं भाषाओं में स्नातक थी। नेपोलियन ने 25 वर्ष में इटली पर विजय पा ली थी।

Safalta aapki


2.    दृढ़ संकल्प शक्ति  :- केवल इच्छा करने से बात नहीं बनती। इच्छा को दृढ़ संकल्प में बदलना होगा। जब आप दृढ़ संकल्प कर लेंगे तो पानी के बुलबुले की भांति पलपल में आपकी इच्छा नहीं बदलेगी। दृढ़ संकल्प का तात्पर्य है-मन, बुद्ध व शरीर से इच्छित लक्ष्य को पाने के लिए कठोर परिश्रम करने को तत्पर होना। इस हेतु (क) कार्य को खेल की तरह रूचि लेते हुए योजना बनाकर करें। (ख) धैर्यपूर्वक लक्ष्य पर अडिग रहें। (ग) जो विपरीत परिस्थितियां आएं  उसे सफलता की सीढ़ी मानते हुए पार करें, कठिनाईयां सफलता की सहचरी है। छोटे-छोटे संकल्प लें और धैर्यपूर्वक उसे पूरा करें। इससे संकल्प शक्ति का विकाश होता है। जैसे आज टी.वी. नहीं देखूंगा, गप्पेबाजी में समय नहीं लगाऊँगा, गाली नहीं दूंगा, गुटखा नहीं खाऊँगा। बाद में बड़े बड़े संकल्प लेने और पूरा करने की ताकत आ जाती है। लाल बहादुर शास्त्री जी,  मिसाइल मैन अब्दुल कलाम आजाद ने अपने दृढ़ संकल्प से लक्ष्य को पा लिया।


3.     परिश्रम एवं पुरुषार्थ :-  जो व्यक्ति अपने शरीर से हमेशा अपने लक्ष्य के अनुरूप श्रम करने को तत्पर रहता है, अपनी शक्तियों का समुचित उपयोग करता है, वह कृतकृत्य हो जाता है। सक्रियता ही जीवन है और निष्क्रियता ही मृत्यु। श्रम से जी चुराने वाले, आलस्य और प्रमाद में पड़े रहने वाले युवा को युवा तो क्या जीवित भी नहीं कहा जा सकता। श्रम करने से शरीर स्वस्थ एवं स्फूर्तिवान बनता है। जिससे वांछित सफलता की ओर बढऩे की प्रेरणा मिलती है। निष्क्रिय कामनाएं कभी सफल नहीं होते। सफलता पाने योग्य शक्तियां मनुष्य में निहित तो होती हैं लेकिन उनका उभार, निखार और उपयोग परिश्रम एवं पुरुषार्थ करने में ही है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सफलता मनुष्य के पसीने का मूल्य है।


4.    आत्म विश्वास एवं आत्म निर्भरता :  - कोई व्यक्ति परिश्रमी पुरुषार्थी तो है किन्तु उसमें आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता की भावना का अभाव है, तो भी उसका पुरुषार्थ व्यर्थ चला जायेगा। अपने आपको दीन हीन नहीं शक्तिशाली समझें। विश्वास करें कि बीज रूप में मेरे भीतर सारी शक्तियाँ विद्यमान है। मैं सब कुछ कर सकता हूँ, जो अन्य सफल व्यक्तियों ने किया है। ‘‘विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हो’’। वास्तव में सबके भीतर परमात्मा ने एक जैसी शक्ति दी है। आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने आप पर विश्वास करता है और सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाईयों को पार कर लेता है। लेकिन परावलम्बी व्यक्ति आत्मविश्वास के अभाव में हर कदम पर झिझकता है। सफलता के मार्ग में अवरोध तो आते हैं। आत्मविश्वासपूर्वक डटे रहने से अन्य सहयोगी भी साथ आ जाते हैं और सहयोग मिलने लगता है। उदा.- महात्मा गांधी अपने आत्मविश्वास से सारे भारत को अपने पीछे चलाने व देश को आजादी दिलाने में सफल हो गए। आब्राहम लिंकन का जीवन असफलताओं के थपेड़ों के बीच सफलता की कहानी है (पृ.......देखें)। युगनिर्माण योजना के सुत्रधार युग ऋिषि पं. श्री राम शर्मा आचार्य अपने आत्म विश्वास के सहारे करोडों लोगों की जीवन दिशा बदलने में कामयाब हो गये। एवं निम्नस्तर के कहे जाने वाले लोग आज उच्च स्थिति में पहुँच गए।  लक्ष्य पर संकल्प पूर्वक डटे रहने से, संकल्पों का पूरा होने से आत्मविश्वास बढ़ता है। कठिनाईयों से जूझने पर आश्चर्यजनक रूप से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।


5.    निरन्तर प्रयास :  - जो व्यक्ति लक्ष्य की प्राप्ती तक बिना रूके निरन्तर चलते रहते हैं, चाहे कछुए की भांति धीरे-धीरे ही क्यों न हो, सफल हो जाते हैं। जिन्हें अपने ध्येय, लक्ष्य के प्रति लगन है, निष्ठा है, उसके मार्ग में ऐसा कौन सा अवरोध हो सकता है जो उसे रोक सके? लकिन आज का सोया हुआ कल बदल गया या चार दिन परिश्रम करने के बाद पानी के बुलबुले की भांति लक्ष्य देने के बाद कुछ दिन लक्ष्य के प्रति समर्पण दिखाने के बाद आराम करने लग गए तो खरगोश की भांति (कछुए व खरगोश की कहानी की भांति) असफलता ही हाथ लगेगी। लक्ष्य के प्रति समर्पित व्यक्ति का सूत्र होता है-   No vacation, No Expectation, No Discrimination.  (कोई छुट्टी नहीं, किसी से कोई अपेक्षा नहीं, कोई भेदभाव नहीं)
उदा.-   वन-वन फिरकर घास की रोटी खाने वाले महाराणा प्रताप हिम्मत नहीं हारे और अन्त तक निरन्तर चलते रहे।


6.     नकारात्मक सोंच (चिन्ता) से दूर रहें :  - नकारात्मक सोच अर्थात् निराशा, भय, सन्देह, उद्विगनता, अविश्वास के भाव, घुटन भरी सोच। चिन्ता और चिता एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह हैं, जो व्यक्ति की जीवनी शक्ति एवं कार्यक्षमता को घटाते-घटाते समाप्त कर देती है। अतीत या भविष्य को लेकर चिन्तित न हों बल्कि स्वस्थ चिन्तन करें। चिन्ता में व्यक्ति अतीत की असफलताओं, गलतियों, अपमान, दु:ख आदि अप्रिय प्रसंगों को याद करते हुए केवल यही सोचता है कि एसा क्यों हुआ, कैसे हो गया, आगे अब क्या होगा? कैसे होगा? केवन परेशान होता है उसकी शारीरिक मानसिक और आत्मिक स्थिति अत्यन्त दील दुर्बल हो जाती है। जो बीत गई सो बात गई, तकदीर का शिकवा कौन करे। जो तीन कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे।
    स्वस्थ चिन्तन से समस्या का हल निकलता है, मस्तिष्क की ऊर्जा सक्रिय दिशा में तेजी से काम करती है। चिन्तामुक्त होने का रामबाण उपाय है- ‘‘व्यस्त रहें मस्त रहें’’।  अचित्य चिन्तन से मुक्त होकर श्रेष्ठ विचारों से ऊँचाई की पराकाष्ठा पर पहुँचा जा सकता है। मानसिक सन्तुलन प्रसन्नता के अधीन रहा करता है। सफलता पाने के लिए प्रसन्नता की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर यात्रा के लिए जीवन की। अप्रसन्न व्यक्ति एक प्रकार से निर्जीव होता है, उसे विषाद और निराशा का क्षय रोग लग जाता है। इस प्रकार के निम्र स्वभाव वाला व्यक्ति सफलता के महान पथ पर किस प्रकार चल सकता है? अत: प्रसन्न रहने की आदत डालें, मुस्कुराएं, अपना सुख तथा दूसरों का दु:ख आपस में बाँटे, बटाएं। मुस्कुराने से स्वभाव या आसपास का वातावरण महकने लगता है, आशा का उमंग का संचार होता है। प्रसन्न रहने के दो उपाय हैं- आवश्यकताएं कम करें तथा परिस्थितियों से तालमेल बिठाएँ।

 
7.    सफल व्यक्तियों को जीवन का आदर्श बनाएँ :  - ऐसे सफल व्यक्ति, महामुरुष जिन्होंने आदर्शों पर चलकर कठिनाईयों से लडक़र जीवन में सफलता पाई हैं, इतिहास में ऐसे गौरवशाली चरित्र के बहुत उदाहरण हैं, उन्हें अपना Role Model    (आदर्श) बनाना चाहिए। ये महापुरुष हमारे जीवन के लिए प्रकाश स्तम्भ (Lamp Post)  हैं। इससे हमने समस्याओं, अभावों, प्रतिकुलताओं से लडऩे को हौसला बढ़ता है, सत्प्रेरणा मिलती है, न कि किसी फिल्मी एक्टर, खिलाड़ी, विश्व सुन्दरी या गलत साधनों व तरीकों से मंजिल पर पहुँचने वाले नेता, अभिनेता या धनपतियों को अपना आदर्श बना लें। मार्टिन लूथर ने 21 वर्ष में धार्मिक सुधार किया।  न्यूटन ने अपने जीवन का  महत्वपूर्ण आविष्कार 21 वर्ष आयु में कर लिया। सिकन्दर 22 वर्ष में दिग्विजय को निकला था। स्वामी विवेकानन्द ने युवावस्था में भारतीय संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व में प्रतिष्ठित करने सन्यास लेकर को देश की अपूर्व सेवा की। सो क्रान्तिकारी वीर देश के लिए अपना यौवन व जीवन कुर्बान कर दिए। सरोजनी नायडू, मेघा पाटकर, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, किरण बेदी आदि नारी समाज की आदर्श बनी। लिंकन और लाल बहादूर शास्त्री गरीब थे। उनका जीवन एक मिसाल है।


8.    कुसंग से बचें :-  वातावरण का, सत्संग का प्रभाव पड़ता है। कुसंग, बुरी संगति में अच्छा व्यक्ति भी निकम्मा, अधर्मी, दुव्र्यसनी, नास्तिक, डरपोक बन जाता है, जबकि अच्छी संगति में सामान्य स्तर का मनुष्य भी श्रेष्ठ आचरण करने को बाध्य हो जाता है। श्रेष्ठ संगती से मनुष्य की गति भी श्रेष्ठ दिशा की ओर होती है अत: सावधान हों। गंदे नाले में गंगा जल की सात्विकता नहीं रह जाती, अत:समझदारी इसी में है कि दुव्र्यसनी, हिंसक, व्यभिचारी, चोर प्रकृति, अशुद्ध भाषण करने वाले, कपटी, आलसी, प्रमादी, धन व समय का अपव्यय व दुरुपयोग करने वाले मित्रों की संगति त्याग दें। सुदामा ने कृष्ण से मित्रता की वे निहाल हो गये। दुर्योधन ने शकुनि से मित्रता की थी परिणामस्वरुप सारे कौरव वंश का नाश हो गया। महापुरुषों की संगती श्रेष्ठ संगति है। उनसे संगति करने का माध्यम है स्वाध्याय। श्रेष्ठ पुस्तकें, सत्साहित्य हमारे सच्चे मित्र हैं। ‘सद्ग्रन्थों के अध्ययन से तत्काल प्रकाश, उल्लास और मार्गदर्शन मिलता है।’ विचारों में सकारात्मकता आती है।


9.    क्रोध और अहंकार से बच्चे :  - क्रोध और अहंकार करने वाले का कोई मित्र नहीं होता। पग-पग पर उसके विरोधी, दुश्मन, और आलोचक पैदा हो जाते हैं। क्रोध से अविवेक और अविवेक से उत्तेजना पैदा होती  है। सम्पूर्ण मस्तिष्क अज्ञानता से भर जाता है और अज्ञान से क्रोधी व्यक्ति का पतन और अन्तत:सर्वनाश हो जाता है। दिन भर में एक व्यक्ति जितना भोजन करता है उसकी सारी ऊर्जा एक बार के क्रोध से नष्ट हो जाती है। अहंकारी व्यक्ति अपने ही मद में चूर रहता है उसके लिए संसार में सीखने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं, उसकी उन्नति असम्भव है।
    हमेशा अपने व्यवहार को सोम्य बनाकर रखें, विनम्रतापूर्वक विद्यार्थी भाव रखने वाले के सामने सारी प्रकृति और परिवार समाज सभी अपना रहस्य व सहयोग के द्वारा खोल देती है। विनम्रता व शालीनता से माता-पिता, मित्र, गुरुजन सभी अपना सद्भाव भरा सहयोग और आशीर्वाद से आपकी झाोली भर देते हैं जो सफलता का बहुत बड़ा कारण है।


10.    समय का प्रबन्धन :-  ‘‘ जो जीवन से प्यार करते हों वे आलस्य में समय न गंवायें  ।’’ समय ही जीवन है। हम समय की कीमत चुकाकर ही सफल विद्यार्थी, कलाकार, संगीतकार, धनपति, आविष्कारक, किसी विषय का विशेषज्ञ हो सकते हैं। जो समय को गप्पबाजी, आवारागर्दी आलस्य में गंवाता है वह सब कुछ गंवा देता है। जो समय को काटता है, टाईम पास करता है, टाईम उसे पास कर देता है। बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता समय को संग्रह नहीं कर सकते। एक समय विशेष के साथ जो सम्भावनाएं जुड़ी रहती है वह उसके साथ ही चली जाती है, इसलीए समय का नुकसान सबसे बड़ा नुकसान है। उदा. पं. श्रीराम शर्मा  आचार्य।
    अत: समय का संयम बरतें-  क) दिनचर्या चार्ट बनाएं आज का काम कल पर न टालें। ‘‘काल करें सो आज कर, आज करें सो अब्ब, पल में परलय होएगी बहुरि करेगा कब्ब।’’  ख) प्राथमिकता क्रम में कार्यों को रखें। अपना प्रत्येक कार्य समय पर पूरा करें। ग) रात्रि में शयन से पहले अपने समय की समीक्षा करें।
    सफलता की सिद्धि मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। जो व्यक्ति अपने इस अधिकार की अपेक्षा करके जैसे तैसी जी लेने में ही सन्तोष मान लेते हैं, वे इस महा मूल्यवान मानव जीवन का अवमूल्यन कर एक ऐसे सुअवसर को खो देते हैं जिसका दोबारा मिल सकना संदिग्ध है। अस्तु उठिए और आज से ही अपनी वांछित सफलता को वरण करने के लिए उद्योग में जुट पडि़ए।
तुम चलो तो आंधियां तूफान खुद ही चल पड़ेंगे,
सागरोंकी बात क्या है, हिमगिरी के शिखर ढल पड़ेंगे।
    मत समझना ये निशाएं तुम्हारा पथ रोक लेगी,
    तुम जले तो दीप क्या, सूरज हजार जल पड़ेंगे।।

यदि आपके पास Hindi में कोई article, story, business idea या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:
safaltaaapki@gmail.com
 पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks

जिसने कभी हार ना मानी मिल्खा सिंह


मिल्खा सिंह
जन्म: 20 नवम्बर 1929, गोविन्दपुरा (पाकिस्तान)कार्य क्षेत्र: पूर्व 400 मीटर धावकउपलब्धियां: 1958 के एशियाई खेलों में 200 मी व 400 मी में स्वर्ण पदक, 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक, 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदकमिलखा सिंह आज तक भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित धावक हैं। इन्होने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था। उनको “उड़न सिख” का उपनाम दिया गया था। 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में उन्होंने पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान को ध्वस्त किया लेकिन पदक से वंचित रह गए। इस दौड़ के दौरान उन्होंने ऐसा राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया जो लगभग 40 साल बाद जाकर टूटा।प्रारंभिक जीवन मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब में एक सिख राठौर परिवार में 20 नवम्बर 1929 को हुआ था। अपने माँ-बाप की कुल 15 संतानों में वह एक थे। उनके कई भाई-बहन बाल्यकाल में ही गुजर गए थे। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आए। दिल्ली में वह अपनी शदी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे।ऐसे भयानक हादसे के बाद उनके ह्रदय पर गहरा आघात लगा था। अपने भाई मलखान के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया और चौथी कोशिश के बाद सन 1951 में सेना में भर्ती हो गए। बचपन में वह घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे और भर्ती के वक़्त क्रॉस-कंट्री रेस में छठे स्थान पर आये थे इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था।
धावक के तौर पर करियर
सेना में उन्होंने कड़ी मेहनत की और 200 मी और 400 मी में अपने आप को स्थापित किया और कई प्रतियोगिताओं में सफलता हांसिल की। उन्होंने सन 1956 के मेर्लबोन्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए लेकिन 400 मीटर प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत भी कराया।इसके बाद सन 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रिय खेलों में उन्होंने 200 मी और 400 मी प्रतियोगिता में राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया और एशियन खेलों में भी इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया। साल 1958 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाडी बन गए। इसके बाद उन्होंने सन 1960 में पाकिस्तान प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में पिछाडा जिसके बाद जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘उड़न सिख’ कह कर पुकारा।

रोम ओलिंपिक खेल, 1960- रोम ओलिंपिक खेल शुरू होने से कुछ वर्ष पूर्व से ही मिल्खा अपने खेल जीवन के सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में थे और ऐसा माना जा रहा था की इन खेलों में मिल्खा पदक जरूर प्राप्त करेंगे। रोम खेलों से कुछ समय पूर्व मिल्खा ने फ्रांस में 45.8 सेकंड्स का कीर्तिमान भी बनाया था। 400 में दौड़ में मिल्खा सिंह ने पूर्व ओलिंपिक रिकॉर्ड तो जरूर तोड़ा पर चौथे स्थान के साथ पदक से वंचित रह गए। 250 मीटर की दूरी तक दौड़ में सबसे आगे रहने वाले मिल्खा ने एक ऐसी भूल कर दी जिसका पछतावा उन्हें आज भी है। उन्हें लगा की वो अपने आप को अंत तक उसी गति पर शायद नहीं रख पाएंगे और पीछे मुड़कर अपने प्रतिद्वंदियों को देखने लगे जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और वह धावक जिससे स्वर्ण की आशा थी कांस्य भी नहीं जीत पाया। मिल्खा को आज तक उस बात का मलाल है। इस असफलता से सिंह इतने निराश हुए कि उन्होंने दौड़ से संन्यास लेने का मन बना लिया पर बहुत समझाने के बाद मैदान में फिर वापसी की।इसके बाद 1962 के जकार्ता में आयोजित एशियन खेलों में मिल्खा ने 400 मीटर और 4 X 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 1964 के टोक्यो ओलिंपिक खेलों में भाग लिया और उन्हें तीन स्पर्धाओं (400 मीटर, 4 X 100 मीटर रिले और 4 X 400 मीटर रिले) में भाग लेने के लिए चुना गया पर उन्होंने 4 X 400 मीटर रिले में भाग लिया पर यह टीम फाइनल दौड़ के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पायी।मिल्खा द्वारा रोम ओलिंपिक में स्थापित राष्ट्रिय कीर्तिमान को धावक परमजीत सिंह ने सन 1998 में तोड़ा।
बाद का जीवन- सन 1958 के एशियाई खेलों में सफलता के बाद सेना ने मिल्खा को ‘जूनियर कमीशंड ऑफिसर’ के तौर पर पदोन्नति कर सम्मानित किया और बाद में पंजाब सरकार ने उन्हें राज्य के शिक्षा विभाग में ‘खेल निदेशक’ के पद पर नियुक्त किया। इसी पद पर मिल्खा सन 1998 में सेवानिवृत्त हुए।वर्ष 1958 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया पर मिल्खा ने सन 2001 में भारत सरकार द्वारा ‘अर्जुन पुरस्कार’ के पेशकश को ठुकरा दिया।मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में जीते सारे पदकों को राष्ट्र के नाम कर दिया। शुरू में उन्हें जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में रखा गया था पर बाद में उन्हें पटियाला के एक खेल म्यूजियम में स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 2012 में उन्होंने रोम ओलिंपिक के 400 मीटर दौड़ में पहने जूते एक चैरिटी की नीलामी में दे दिया।वर्ष 2013 में मिल्खा ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर अपनी आत्मकथा ‘The Race of My Life’ लिखी। इसी पुस्तक से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘भाग मिल्खा भाग’ नामक फिल्म बनायी। इस फिल्म में मिल्खा का किरदार मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया।
निजी जीवन- मिल्खा सिंह ने भारतीय महिला वॉलीबॉल के पूर्व कप्तान निर्मल कौर से सन 1962 में विवाह किया। कौर से उनकी मुलाकात सन 1955 में श्री लंका में हुई थी। इनके तीन बेटियां और एक बेटा है। इनका बेटा जीव मिल्खा सिंह एक मशहूर गोल्फ खिलाडी है। सन 1999 में मिल्खा ने शहीद हवलदार बिक्रम सिंह के सात वर्षीय पुत्र को गोद लिया था। मिल्खा सम्प्रति में चंडीगढ़ शहर में रहते हैं।

यदि आपके पास Hindi में कोई article, story, business idea या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है.  safaltaaapki@gmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks

स्टार्टअप क्या है कम पूंजी से शुरू होने वाले बिज़नेस || What is a startup, a business starting with low capital

स्टार्टअप क्या है स्टार्टअप का मतलब एक नई कंपनी से होता है।आमतौर पर उसको शुरू करने वाला व्यक्ति उसमें निवेश करने के साथ साथ कंपनी का संचालन ...