Thursday 25 February 2016

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है
सफल जीवन के सूत्र
1. जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो।
2. दृढ़ संकल्पशक्ति पैदा हो तथा सकारात्मक लक्ष्य के लिए संकल्पित हो।
3. सकारात्मक चिन्तन जागृत हो।
4. अपनी आत्मशक्ति की ताकत पहचाने।
5. मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, परन्तु कैसे?
         ‘‘असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया।’’ संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में हर क्षेत्र में सफल होना चाहता है चाहे नौकरी हो या व्यापार, विद्यार्जन हो, प्रतियोगी परीक्षा हो, चाहे कोई कलाकार, संगीतकार, वैज्ञानिक, व्यवसायी हो या कृषक। लड़का हो या लड़की, विवाहित हो या अविवाहित, सभी सफलता चाहते हैं। लेकिन सफलता शेखचिल्लियों या ख्याली पुलाव पकाने वाले या कोरी कल्पनाओं में सोए रहकर सपने देखने वालों को नहीं मिलती।
          सफलता ब्याज चाहती है, सफलता को मूल्य देकर (पैसा नहीं) पाना होता है। यह सत्य है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है। लेकिन अपनी सफलता की कहानी लिखी जा सके इससे पहले कुछ सूत्रों को अपनाना होगा। दुनिया के सफलतम व्यक्तियों जिन्होंने अपने जीवन में कामयाबी हासिल की उन्होंने कुछ सूत्रों को जीवन में स्थान दिया। सफलता के शिखर को जिन्होंने छुआ, उस पर प्रतिष्ठित हुए ऐसे महापुरुषों के जीवन में अपनाए गए प्रयोगों से हम प्रेरणा लें।
1. दृढ़ इच्छा शक्ति :-
          सफलता का मूल मनुष्य की इच्छाशक्ति में सन्निहित होती है। समुद्र से मिलने की प्रबल आकांक्षा करने वाली नदी की भांति वह मनुष्य भी अपनी सफलता के लिए मार्ग निकाल लेता है, जिसकी इच्छाशक्ति दृढ़ और बलवती होती है, उसके मार्ग में कोई भी रुकावट बाधा नहीं डाल सकती। संसार के सभी छोटे- बड़े कार्य किए जा सकने के माध्यम शक्ति है। लेकिन वास्तविक शक्ति मनुष्य की इच्छा शक्ति है। इच्छा की स्फुरण से कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। प्रेरणा से व्यक्ति कर्म करने के लिए प्रवृत्त हो जाता है।
          इस प्रकार सारी सफलताएँ इच्छा शक्ति के अधीन होती है। एक गांव में मजदूर के घर पला हुआ बच्चा लखपति बन जाता है। छोटे से किसान के घर सामान्य जीवन जीने वाला विद्यावान् बन जाता है। यह उसकी इच्छा शक्ति है। महात्मा गांधी प्रबल इच्छा शक्ति के जीते जागते आदर्श थे। कु. केलर गूंगी बहरी अंधी होकर भी कई विषयों एवं भाषाओं में स्नातक थी। नेपोलियन ने 25 वर्ष में इटली पर विजय पा ली थी।
2. दृढ़ संकल्प शक्ति :-
          केवल इच्छा करने से बात नहीं बनती। इच्छा को दृढ़ संकल्प में बदलना होगा। जब आप दृढ़ संकल्प कर लेंगे तो पानी के बुलबुले की भांति पल-पल में आपकी इच्छा नहीं बदलेगी। दृढ़ संकल्प का तात्पर्य है- मन, बुद्ध व शरीर से इच्छित लक्ष्य को पाने के लिए कठोर परिश्रम करने को तत्पर होना। इस हेतु
(क) कार्य को खेल की तरह रुचि लेते हुए योजना बनाकर करें।
(ख) धैर्यपूर्वक लक्ष्य पर अडिग रहें।
(ग) जो विपरीत परिस्थितियाँ आए उसे सफलता की सीढ़ी मानते हुए पार करें,कठिनाइयां सफलता की सहचरी है।
          छोटे- छोटे संकल्प लें और धैर्यपूर्वक उसे पूरा करें। इससे संकल्प शक्ति का विकास होता है। जैसे आज टी.वी. नहीं देखूँगा, गप्पेबाजी में समय नहीं लगाऊँगा, गाली नहीं दूँगा, गुटखा नहीं खाऊँगा। बाद में बड़े बड़े संकल्प लेने और पूरा करने की ताकत आ जाती है। लाल बहादुर शास्त्री जी, मिसाइल मैन अब्दुल कलाम आजाद ने अपने दृढ़ संकल्प से लक्ष्य को पा लिया।
3. परिश्रम एवं पुरुषार्थ :-
           जो व्यक्ति अपने शरीर से हमेशा अपने लक्ष्य के अनुरूप श्रम करने को तत्पर रहता है, अपनी शक्तियों का समुचित उपयोग करता है, वह कृतकृत्य हो जाता है। सक्रियता ही जीवन है और निष्क्रियता ही मृत्यु। श्रम से जी चुराने वाले, आलस्य और प्रमाद में पड़े रहने वाले युवा को युवा तो क्या जीवित भी नहीं कहा जा सकता।
          श्रम करने से शरीर स्वस्थ एवं स्फूर्तिवान् बनता है। जिससे वांछित सफलता की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। निष्क्रिय कामनाएँ कभी सफल नहीं होते। सफलता पाने योग्य शक्तियाँ मनुष्य में निहित तो होती हैं लेकिन उनका उभार, निखार और उपयोग परिश्रम एवं पुरुषार्थ करने में ही है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सफलता मनुष्य के पसीने का मूल्य है।

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