Thursday 25 February 2016

सफलता पाने के लिए जरूरी है अपने लक्ष्य को पहचानना और उनका पीछा करना

सफलता पाने के लिए जरूरी है अपने लक्ष्य को पहचानना और उनका पीछा करना

अपने सपने साकार करने की दिशा में काम करने से आपके जीवन का महत्व बढ़ जाता है। इतिहास का एक प्रसंग इस बात का उदाहरण है। सबने यह कहानी सुनी होगी, जब न्यूटन ने सेब के फल को गिरते देख कर गुरुत्वाकर्षण का नियम खोजा था। परन्तु बहुत कम लोग यह जानते है कि हैली धूमकेतु की खोज करने वाले एडमंड हैली ने ही न्यूटन के सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया। हैली ने न्यूटन को चुनौती दी कि वे अपनी मौलिक अवधारणाओं पर दुबारा विचार करें। उन्होंने न्यूटन की गणितीय गलतियों को ठीक किया और उनके शोध के समर्थन में ज्योमेट्री के रेखा चित्र खींचें। उन्होंने न सिर्फ न्यूटन का उनका महान ग्रन्थ Mathematical Principle of Natural Philosophy लिखने के लिए प्रेरित किया, बल्कि इसका संपादन भी किया। हैली ने न्यूटन को अपने सपनों पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया और इस वजह से न्यूटन का जीवन ज्यादा महत्वपूर्ण बन गया। न्यूटन को कई पुरस्कारों से नवाजा जाने लगा। हैली को बहुत कम श्रेय मिला, परन्तु उन्हें यह जान कर बहुत संतोष हुआ होगा कि उन्होंने वैज्ञानिक चिंतन की प्रगति में क्रांतिकारी विचारों को प्रेरित किया।

     अपने सपनों को पहचाने और उसका पीछा करें। उसे व्यक्तिगत हांसिल करने योग्य, आंकलन करने योग्य, दिखने वाला और विस्तृत होने वाला बनायें। महत्व आकांक्षा हमसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करवा लेती है, और जिस उपलब्धि का हमने सपना देखा उसका हिस्सा बनाने से हमारे आस पास के लोगों का जीवन समृद्ध हो सकता है। आप जिन लोगों का प्रतिनिधित्व करतें है। उन्हें महत्व का एहसास दिलाने के लिए बड़ी तस्वीर दिखाएँ और यह बात बता दें कि वे इसमें किस तरह योगदान दे रहें है।
     एक बार जब आप लोगों को विकास के महत्व का इतना एहसास दें की वे खुद अपने बारे में सोचने लगें, तो आप एक बड़े अवरोध को पार कर लेतें हैं। कहा जाता है शिक्षकों का लक्ष्य विद्यार्थियों को इस तरह तैयार करना होने चाहिए, ताकि वे उनके बिना भी सीख सकें। जब आप दूसरों के विकास में मदद करतें है तो यह जरूरी है कि उन्हें उनके जरूरत की हर चीज़ मिले, ताकि वे अपनी खुद की देखभाल करना सीख सकें। उन्हें संसाधन खोजना सिखाएं , उन्हें आलस्य से बाहर निकाल कर प्रोत्साहित करें और उन लोगों के बीच में रहने का मौका दें जो सीखने और विकसित होने में उनकी मदद कर सकें।  
     हमने यह सुना है कि तब तक कोई अमीर नहीं बन सकता, जब तक उसमें किसी दूसरे को बनाने का सामर्थ्य न हो। ऐसा कर के उसे सिर्फ प्रसन्नता ही नहीं मिलती, इससे वह समृधि का विस्तार भी करता है।
     जीवन के हर एक क्षेत्र में एक गलती आम है – श्रेय बांटने और दूसरों को प्रोत्साहन देने में असफलता। हर व्यक्ति श्रेय और सराहना का भूखा होता है। जब आप लोगों के संपर्क में आयें तो भीड़ में से थोड़ा धीमे गुजरें। लोगों का नाम याद रखें और उन्हें यह जताने का समय निकालें कि आपको उनकी परवाह है। बहुत कम चीज़े किसी व्यक्ति की मदद कर सकती है जितना की प्रोत्साहन। विलियम ए वार्ड कहतें है- “आप मेरी खुशामद करें तो हो सकता कि मै आप का विश्वास न करूं। अगर आप मेरी आलोचना करें तो हो सकता है कि मे आप को पसंद न करूं। अगर आप मेरी उपेक्षा करेंगे तो हो सकता है कि मै आप को माफ न करूं। परन्तु आप मुझे प्रोत्साहित करें तो मै आप को कभी नहीं भूल पाऊंगा”। जो आदमी अपनी अंतरआत्मा की उपेक्षा करता है, समझिये वह परिस्थितियों का गुलाम है। गुलाम ऐसे लोगों के सन्दर्भ में सही शब्द हैं, जिनमे ईमानदारी की कमी है, क्योकि वे अक्सर खुद को अपनी और दूसरों की बदलती इच्छाओं के वश में होतें हैं। लेकिन जो ईमानदार है, वे खुद को स्वतंत्रता का अनुभव करतें है। ईमानदारी की नींव में किसी दरार से बचने का तरीका आज ही यह निर्णय लेना है कि आप अपनी नैतिकता को शक्ति, प्रतिशोध, धन या गर्व के लिए नहीं बेचेंगे। अगर आप अपने जीवन मूल्यों की लक्ष्मण रेखा लान्घतें हैं- चाहे वह एक इंच हो या एक मील हो- तो आप पूरी तरह ईमानदार नही रहेंगे। ईमानदारी वह द्वार खोलती है जिससे कोई भी स्थाई सफलता का अनुभव कर सकता है।
     ईमानदारी जीवन में अपने आप नही आती, वह तो आत्म अनुशासन, आतंरिक विश्वास और जीवन की सभी परिस्थितियों में ईमानदार होने के निर्णय का परिणाम होता है। दुर्भाग्य से आज की दुनिया में चारित्रिक दृढ़ता एक दुर्लभ वस्तु है। ईमानदारी का अर्थ भी सिमट कर रह गया है। आज की संस्कृति को दिशा देने वाला जीवन दर्शन भौतिक है। यह ग्राहक की मानसिकता के इर्द- गिर्द घूमती है। क्षण की प्रबल आवश्यकता स्थाई महत्व के जीवन मूल्यों पर हावी हो जाती है। जब हम किसी के सामने अपने जीवन मूल्य बेचतें है तो दरअसल हम खुद को भी बेच देतें है। इसलिए कहा जाता है कि जब धन नष्ट होता है तो कुछ भी नष्ट नही होता। जब स्वास्थ्य नष्ट होता है तो थोड़ा सा नष्ट होता है। लेकिन जब चरित्र नष्ट होता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है।

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