Wednesday 24 February 2016

छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष भीमराव आम्बेडकर

छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष
भीमराव आम्बेडकर
1920 के दशक में बंबई में एक बार बोलते हुए उन्होंने साफ-साफ कहा था जहाँ मेरे व्यक्तिगत हित और देशहित में टकराव होगा वहाँ मैं देश के हित को प्राथमिकता दूँगा, लेकिन जहाँ दलित जातियों के हित और देश के हित में टकराव होगा, वहाँ मैं दलित जातियों को प्राथमिकता दूँगा। वे अंतिम समय तक दलित-वर्ग के मसीहा थे और उन्होंने जीवनपर्यंत अछूतोद्धार के लिए कार्य किया। जब महात्मा गाँधी ने दलितों को अल्पसंख्यकों की तरह पृथक निर्वाचन मंडल देने के ब्रिटिश नीति के ख़िलाफ़ आमरण अनशन किया।
सन् 1927 में उन्होंने हिन्दुओं द्वारा निजी सम्पत्ति घोषित सार्वजनिक तालाब से पानी लेने के लिए अछूतों को अधिकार दिलाने के लिए एक सत्याग्रह का नेतृत्व किया। उन्होंने सन् 1937 में बंबई उच्च न्यायालय में यह मुक़दमा जीता।
आम्बेडकर ने ऋग्वेद से उद्धरण देकर दिखाया है कि आर्य गौर वर्ण के और श्याम वर्ण के भी थे। अश्विनी देवों ने श्याव और रुक्षती का विवाह कराया। श्याव श्याम वर्ण का है और रुक्षती गौर वर्ण की है। अश्विनी वंदना की रक्षा करते हैं और वह गौर वर्ण की है। एक प्रार्थना में ॠषि कहते हैं कि उन्हें पिशंग वर्ण अर्थात भूरे रंग का पुत्र प्राप्त हो। आम्बेडकर का निष्कर्ष है: इन उदाहरणों से ज्ञात होता है कि वैदिक आर्यों में रंगभेद की भावना नहीं थी। होती भी कैसे? वे एक रंग के थे ही नहीं। कुछ गोरे थे, कुछ काले थे, कुछ भूरे थे। दशरथ के पुत्र राम श्याम वर्ण के थे। इसी तरह यदुवंशी कृष्ण भी श्याम वर्ण के थे। ऋग्वेद के अनेक मंत्रों के रचनाकार दीर्घतमस हैं। उनके नाम से ही प्रतीत होता है, वे श्याम वर्ण के थे। आर्यों में एक प्रसिद्ध ॠषि कण्व थे। ऋग्वेद में उनका जो विवरण मिलता है, उससे ज्ञात होता है, वे श्याम वर्ण के थे। इसी तरह आम्बेडकर ने इस धारणा का खंडन किया कि आर्य गोरी नस्ल के ही थे।
 आम्बेडकर ने मंदिरों में अछूतों के प्रवेश करने के अधिकार को लेकर भी संघर्ष किया। वह लंदन में हुए गोलमेज़ सम्मेलन के शिष्टमंडल के भी सदस्य थे, जहाँ उन्होंने अछूतों के लिए अलग निर्वाचन मंडल की मांग की। महात्मा गांधी ने इसे हिन्दू समाज में विभाजक मानते हुए विरोध किया।
1931 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को सम्बोधित करते हुए आम्बेडकर ने गोलमेज सम्मेलन में कहा: ब्रिटिश पार्लियामेंट और प्रवक्ताओं ने हमेशा यह कहा है कि वे दलित वर्गों के ट्रस्टी हैं। मुझे विश्वास है, कि यह बात सभ्य लोगों की वैसी झूठी बात नहीं है जो आपसी सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिए कही जाती है। मेरी राय में किसी भी सरकार का यह निश्चित कर्तव्य होगा कि जो धरोहर उसके पास है, उसे वह गँवा न दे। यदि ब्रिटिश सरकार हमें उन लोगों की दया के भरोसे छोड़ देती है जिन्होंने हमारी खुशहाली की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया, तो यह बहुत बड़ी गद्दारी होगी। हमारी तबाही और बर्बादी की बुनियाद पर ही ये लोग धनीमानी और बड़े बने हैं।
सन् 1932 में पूना समझौते में गांधी और आम्बेडकर, आपसी विचार–विमर्श के बाद एक मध्यमार्ग पर सहमत हुए। आम्बेडकर ने शीघ्र ही हरिजनों में अपना नेतृत्व स्थापित कर लिया और उनकी ओर से कई पत्रिकाएं निकालीं; वह हरिजनों के लिए सरकारी विधान परिषदों में विशेष प्रतिनिधित्व प्राप्त करने में भी सफल हुए। आम्बेडकर ने हरिजनों का पक्ष लेने के महात्मा गांधी के दावे को चुनौती दी और व्हॉट कांग्रेस ऐंड गांधी हैव डन टु द अनटचेबल्स (सन् 1945) नामक लेख लिखा। सन् 1947 में आम्बेडकर भारत सरकार के क़ानून मंत्री बने। उन्होंने भारत के संविधान की रूपरेखा बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई, जिसमें उन्होंने अछूतों के साथ भेदभाव को प्रतिबंधित किया और चतुराई से इसे संविधान सभा द्वारा पारित कराया। सरकार में अपना प्रभाव घटने से निराश होकर उन्होंने सन् 1951 में त्यागपत्र दे दिया। सन् 1956 में वह नागपुर में एक समारोह में अपने दो लाख अछूत साथियों के साथ हिन्दू धर्म त्यागकर बौद्ध बन गए, क्योंकि छुआछूत अब भी हिन्दू धर्म का अंग बनी हुई थी। डॉक्टर आम्बेडकर को सन् 1990 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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